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________________ २, ७, ३६.1 फोसणाणुगमे देवाणं फोसणं [ ३८७ दोरज्जुमेत्तमद्धाणं गंतूण ट्ठिदभवणादिदेवाणं घणोदहिद्विदआउकाइयजीवेसु मुक्कमारणंतियाणं णवचोद्दसभागमेत्तफोसणुवलंभादो । उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? ॥ ३५॥ सुगममेदं । लोगस्स असंखेज्जदिभागो ॥ ३६॥ एदस्स अत्थो वुच्चदे- एत्थ वट्टमाणपरूवणाए खेत्तभंगो । संपधि तीदकालखेत्तपरूवणं कस्सामो । तं जहा- उववादपरिणदेहि भवणवासिय-वाण-तर-जोदिसिएहि तिण्हं लोगाणमसंखेजदिभागो, तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागो, अड्डाइज्जादो असंखेज्जगुणो फोसिदो। जोइसियाणं णवजोयणसदबाहल्लं तिरियपदरं ठविय उड्वमेगूणवंचासखंडाणि करिय पदरागारेण ठइदे तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमेत्तं उववादखेत्तं होदि । वाणवेंतराणं जोयणलक्खबाहल्लं तिरियपदरं ठविय उड्वमेगुणवंचासखंडाणि करिय पदरागारेण ठइदे तिरियलोगस्स संखेज्जदिभागमेत्तमुववादखेत्तं होदि । भवणवासियाणं पि जोयण मूलसे नीचे दो राजुमात्र मार्ग जाकर स्थित भवनवासी आदि देवोंका घनोदधि वातवलयमें स्थित अप्कायिक जीवोंमें मारणान्तिकसमुद्घात करते समय नौ बटे चौदह भागमात्र स्पर्शन पाया जाता है। उपपाद पदकी अपेक्षा उक्त देवों द्वारा कितना क्षेत्र स्पृष्ट है ? ॥ ३५ ॥ यह सूत्र सुगम है। उपपाद पदकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भाग स्पृष्ट है ॥ ३६ ॥ इस सूत्रका अर्थ कहते हैं- यहां वर्तमान प्ररूपणा क्षेत्रप्ररूपणाके समान है। इस समय अतीतकालिक क्षेत्रप्ररूपणा करते हैं। वह इस प्रकार है- उपपादपरिणत भवनवासी, वानव्यन्तर और ज्योतिषी देवों द्वारा तीन लोकोंका असंख्यातवां भाग, तिर्यग्लोकका संख्यातवां भाग, व अढ़ाईद्वीपसे असंख्यातगुणा क्षेत्र स्पृष्ट है । ज्योतिषी देवोंके नौ सौ योजन बाहल्यरूप तिर्यप्रतरको स्थापित कर व ऊपरसे उनचास खण्ड करके प्रतराकारसे स्थापित करनेपर तिर्यग्लोकका संख्यातवां भागमात्र उपपादक्षेत्र होता है। वानव्यन्तर देवोंके एक लाख योजन बाहल्यरूप तिर्यप्रतरको स्थापित कर व ऊपरसे उनचास खण्ड करके प्रतराकारसे स्थापित करनेपर तिर्यग्लोकका संख्यातवां भागमात्र उपपादक्षेत्र होता है । भवनवासियोंके भी एक लाख योजन बाहल्यरूप राजु १ प्रतिषु ' हेहदोरज्जु' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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