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________________ २१८] छक्खंडागमे खुदाबंधो [ २, ५, ९. एदीए संखाए विदियादिछप्पुढविणेरइया अवट्ठिदा त्ति जाणावणद्वमुत्तरसुत्तं भणदि । अधवा, बिदियादिछप्पुढविणेरइया णाणता, ओघणेरइयाणमणंतसंखाभावादो । तदो दोण्णं संखाणं मज्झे एदीए संखाए छप्पुढविणेरइया अवट्टिदा त्ति जाणावणद्वमुत्तरसुत्तमागदं असंखेज्जा ॥९॥ असंखेज्जवयणेण संखेज्जस्स पडिसेहो कदो। असंखेज्जं पि परित्त-जुत्त-असंखेज्जासंखेज्जभेएण तिविहं । एत्थ एदम्हि असंखेज्जे छप्पुढविदव्यमवाद्विदमिदि. जाणावणहूँ कालपमाणपरूवणसुत्तमागदं असंखेजासंखेनाहि ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीहि अवहिरंति कालेण ॥१०॥ एदेण असंखेज्जासंखेज्जवयणेण परित्त-जुत्तासंखेज्जाणं पडिसेहो कदो । एदं पि असंखेज्जासंखेज्जं जहण्णुक्कस्स-तन्वदिरित्तभेएण तिविहं । एत्थ एदम्हि संखाविसेसे छप्पुढविदव्वं होदि त्ति जाणावणमुत्तरं खेत्तपमाणपरूवणसुत्तमागदं इन तीनों ही संख्याओंमेंसे इस संख्यामें द्वितीयादि छह पृथिवियोंके नारकी अवस्थित हैं, इसके शापनार्थ उत्तर सूत्र कहते हैं। अथवा, द्वितीयादि छह पृथिवियोंके नारकी अनन्त नहीं है, क्योंकि, सामान्य नारकियोंके अनन्त संख्याका अभाव है। इसलिये दो संख्याओंके मध्यमें इस संख्यामें छह पृथिवियोंके नारकी अवस्थित हैं, इसके ज्ञापनार्थ उत्तर सूत्र प्राप्त होता है द्वितीयादि छह पृथिवियोंके नारकी द्रव्यप्रमाणसे असंख्यात हैं ॥ ९॥ 'असंख्यात' इस वचनसे संख्यातका प्रतिषेध किया गया है । असंख्यात भी परीतासंख्यात, युक्तासंख्यात और असंख्यातासंख्यातके भेदसे तीन प्रकार है। उनमेंसे इस असंख्यातराशिमें छह पृथिवियोंके द्रव्यका अवस्थान है, इसके ज्ञापनार्थ कालप्रमाणकी प्ररूपणा करनेवाला सूत्र प्राप्त होता है द्वितीय पृथिवीसे लेकर सातवीं पृथिवी तक प्रत्येक पृथिवीके नारकी कालकी अपेक्षा असंख्यातासंख्यात अवसर्पिणी और उत्सर्पिणियोंसे अपहृत होते हैं ॥ १० ॥ इस ' असंख्यातासंख्यात' वचनसे परीतासंख्यात और युक्तासंख्यातका प्रतिषेध किया गया है । यह असंख्यातासंख्यात भी जघन्य, उत्कृष्ट और तद्व्यतिरिक्तके भेदसे तीन प्रकार है। उनमेंसे इस संख्याविशेषमें छह पृथिवियोंका द्रव्य है, इसके शापनार्थ अगला क्षेत्रप्रमाणप्ररूपणासूत्र प्राप्त होता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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