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________________ १९०] छक्खंडागमे खुदाबंधी [२, ३, १.. ___ कुदो ? अप्पिदगदीदो णिग्गंतूण अणप्पिदगदीसुप्पज्जिय खुद्दाभवग्गहणमच्छिय पुणो अप्पिदगदिमागयस्स खुद्दाभवग्गहणमेत्तंतरुवलंभादो। उकस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा ॥१०॥ कुदो ? अप्पिदगदीदो णिग्गंतूण एइंदिय-विगलिंदियादिअणप्पिदगदीसु आवलियाए असंखेज्जदिभागमेत्तपोग्गलपरियट्टे भमिय अप्पिदगदिमागदस्स तदुवलंभादो । देवगदीए देवाणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ॥ ११ ॥ सुगम । जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ १२ ॥ कुदो ? देवगदीदो आगंतूण तिरिक्ख-मणुस्सगभोवक्कंतियपज्जत्तएसुप्पन्जिय पज्जत्तीओ समाणिय देवाउअंबंधिय देवेसुप्पण्णस्स अंतोमुहुर्ततरुवलंभादो । उकस्सेण अणंतकालमसंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा ॥ १३॥ क्योंकि, विवक्षित गतिसे निकलकर अविवक्षित गतियों में उत्पन्न हो । यहां क्षुद्रभयग्रहणमात्र काल रहकर पुनः विवक्षित गतिमें आये हुए जीवके क्षुद्रभवग्रहणमात्र अन्तर पाया जाता है। ___ अधिकसे अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल तक पूर्वोक्त तियंचोंका तियंचगतिसे और मनुष्योंका मनुष्यगतिसे अन्तर होता है ॥ १० ॥ क्योंकि, विवक्षित गतिसे निकलकर एकेन्द्रिय व विकलेन्द्रिय आदि अविवक्षित गतियों में आवलीके असंख्यातवें भागप्रमाण पुद्गलपरिवर्तन भ्रमण कर विवक्षित गतिमें आये हुए जीवके सूत्रोक्त प्रमाण अन्तर पाया जाता है। देवगतिसे देवोंका अन्तर कितने काल तक होता है ? ॥ ११ ॥ यह सूत्र सुगम है। कमसे कम अन्तर्मुहूर्त काल तक देवोंका देवगतिसे अन्तर होता है ।। १२ ।। क्योंकि, देवगतिसे आकर गर्भोपक्रान्तिक पर्याप्त तिर्यचों व मनुष्योंमें उत्पन्न होकर पर्याप्तियां पूर्ण कर देवायु बांध, पुनः देवोंमें उत्पन्न हुए जीवके देवगतिसे अन्तमुहूर्तमात्र अन्तर पाया जाता है। अधिकसे अधिक असंख्यात पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण अनन्त काल तक देवगतिसे देवोंका अन्तर होता है ॥ १३ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary www.jainelibrary.org
SR No.001401
Book TitleShatkhandagama Pustak 07
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1945
Total Pages688
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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