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________________ १, ९-९, २११. ] चूलियाए गदियागदियाए णेरइयाणं गदीओ गुणुप्पादणं च (१८७ सासणसम्मत्तं सम्मत्ते पविसदि त्ति पुध ण उत्तं । सेसं संजमादि णो उप्पाएंति' त्ति कधं णव्वदे ? विहीए अभावादो । ण च होतं ण भणई तित्थयरो, विरोहादो । पंचमीए पुढवीए णेरइया णिरयादो रइया उव्वट्टिदसमाणा कदि गदीयो आगच्छंति ? ॥२०९॥ दुवे गदीयो आगच्छंति तिरिक्खगदिं चेव मणुसगदि चेव ॥२१० ॥ तिरिक्खेसु उववण्णल्लया तिरिक्खा केई छ उप्पाएंति ॥२११॥ तिरिक्खभवमछंडिऊणेत्ति जाणावणटुं विदियतिरिक्खगहणं । ताणि छ पुवं परूविदाणि त्ति णेह कहियाई । सासादनसम्यक्त्व सम्यक्त्व में प्रविष्ट हो जाता है, इसलिये उसका पृथक् उल्लेख नहीं किया गया। शंका-तिर्यंच और मनुष्योंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच और मनुष्य संयमादि शेष गुणोंको उत्पन्न नहीं करते, यह कैसे जाना जाता है ? समाधान-क्योंकि उनके संयमादि उत्पन्न करनेका विधान नहीं किया गया। यदि उनमें संयमादिकी उत्पत्ति होती तो यह हो नहीं सकता था कि तीर्थकर उसका प्रतिपादन न करें, क्योंकि ऐसा मानने में विरोध आता है। पांचवीं पृथिवीके नारकी जीव नरकसे नारकी होते हुए निकलकर कितनी गतियोंमें आते हैं ? ॥ २०९॥ पांचवीं पृथिवीसे निकलकर नारकी जीव दो गतियोंमें आते हैं- तिर्यचगति और मनुष्यगति ॥ २१० ॥ तिर्यचोंमें उत्पन्न होनेवाले तिर्यंच कोई छह उत्पन्न करते हैं ॥ २११॥ ___ 'तिर्यंचभवको न छोड़कर' यह जतलानेके लिये सूत्रमें दूसरी वार 'तिर्यंच' शब्दका उपयोग किया गया है। उन छहका प्ररूपण पहले कर आये हैं इसलिये यहां उनका नामोल्लेख नहीं किया गया। ........ १ मघव्या मनुष्यलाभो न षट्या भूमेर्विनिर्गताः । संयमं तु पुनः पुण्यं नाप्नुवन्तीति निश्रयः ॥ तत्त्वार्थसार २, १४९. २ आपतौ ण च होतं भणइ ण' इति पाठः । ३ पंचम्या उद्धर्तितास्तिर्यक्षुत्पन्नाः केचिषडुत्पादयन्ति, न सर्वे, नायतोन्यत् । त. रा. ३, ६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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