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________________ १, ९-८, १६.] चूलियाए सम्मत्तुप्पत्तीए खइयचारित्तपडिवजणविहाणं [३७३ फद्दयस्स आदिवग्गणाए अविभागपडिच्छेदग्गमुद्दिस्सदि तदित्थफद्दयस्स आदिवग्गणाए अविभागच्छेदग्गादो पडिच्छेदग्गं तदित्थगुणं । एवं मायाए माणस्स कोधस्स य । अस्सकण्णकरणस्स पढमअणुभागखंडए हदे अणुभागस्स अप्पाबहुअं वत्तइस्सामो । तं जहा- सव्वत्थोवाणि कोधस्स अपुव्वफद्दयाणि । माणस्स अपुधफद्दयाणि विसेसाहियाणि । मायाए अपुव्वफद्दयाणि विसेसाहियाणि । लोभस्स अपुवफद्दयाणि विसेसाहियाणि । एगपदेसगुणहाणिहाणंतरफद्दयाणि असंखेज्जगुणाणि । एगफद्दयवग्गणाओ अगंतगुणाओ। कोधस्स अपुयफद्दयवग्गणाओ अशंतगुणाओ। माणस्स अपुव्वफद्दयवग्गणाओ विसेसाहियाओ। मायाए अपुव्यफद्दयवग्गणाओ विसेसाहियाओ। लोभस्स अपुव्यफद्दयवग्गणाओ विसेसाहियाओ । लोभस्स पुयफद्दयाणि अणंतगुणाणि । तेसिं चेव वग्गणाओ अणंतगुणाओ । मायाए पुवफद्दयाणि अणंतगुणाणि । तेसिं चेव वग्गणाओ अणंतगुणाओ। माणस्स पुव्यफद्दयाणि अणंतगुणाणि । तेसिं चेव वग्गणाओ अणंतगुणाओ । कोधस्स पुवफयाणि अणंतगुणाणि । तेसिं चेव वग्गणाओ अणंतगुणाओं । एवमंतोमुहुत्तमस्सकण्णकरणं । अविभागप्रतिच्छेदाग्रसे जितनेवें स्पर्द्धककी प्रथम वर्गणाके अविभागप्रतिच्छेदारका संकल्प हो उतनेवें स्पर्द्धककी प्रथम वर्गणामें (प्रथम स्पर्द्धकसम्बंधी प्रथम वर्गणाके) अविभागप्रतिच्छेदाग्रसे उतनागुणा प्रतिच्छेदान होता है । इसी प्रकार माया, मान और क्रोधके अपूर्वस्पर्द्ध कोमें अविभागप्रतिच्छेदानके अल्पबहुत्वका क्रम जानना चाहिये। अश्वकर्णकरणके प्रथम अनुभागकांडकके नष्ट होनेपर अनुभागके अल्पबहुत्वको कहते हैं। वह इस प्रकार है - क्रोधके अपूर्वस्पर्धक सबसे स्तोक, मानके अपूर्वस्पर्धक विशेष अधिक, मायाके अपूर्वस्पर्धक विशेष अधिक, और लोभके अपूर्वस्पर्धक विशेष अधिक हैं । एकप्रदेशगुणहानिस्थानान्तरके स्पर्धक असंख्यातगुणे हैं। एक स्पर्धककी वर्गणायें अनन्तगुणी हैं। क्रोधकी अपूर्वस्पर्धकवर्गणायें अनन्तगुणी हैं। मानकी अपूर्वस्पर्धकवर्गणायें विशेष अधिक हैं । मायाकी अपूर्वस्पर्धकवर्गणायें विशेष अधिक है। लोभकी अपूर्वस्पर्धकवर्गणायें विशेष अधिक हैं । लोभके पूर्वस्पर्धक अनन्तगुणे हैं। उन्हीं पूर्वस्पर्धकोंकी वर्गणायें अनन्तगुणी हैं। मायाके पूर्वस्पर्धक अनन्तगुणे हैं। उनकी ही वर्गणायें अनन्तगुणी हैं । मानके पूर्वस्पर्धक अनन्तगुणे हैं। उनकी ही वर्गणायें अनन्तगुणी हैं। क्रोधके पूर्वस्पर्धक अनन्तगुणे हैं। उनकी ही वर्गणायें अनन्तगुणी हैं। इस प्रकार अन्तर्मुहूर्तकाल तक अश्वकर्णकरण प्रवर्तमान रहता है। १ आदोलस्स य चरिमे अपुव्वादिमवग्गणाविभागादो। दोचढिमादीणादी चढिदवा मेत्तणंतमुणा ॥ लब्धि. ४८३. २ आदोलस्स य पढमे रसखंडे पाडिदे अपुव्वादो। कोहादी अहियकमा पदेसगुणहाणिफड़या तत्तो ।। होदि असंखेजगुणं इगिफयवग्गणा अणंतगुणा । तत्तो अणंतगुणिदा कोहस्स अपुब्बफड़याणं च ॥ माणादीण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001400
Book TitleShatkhandagama Pustak 06
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1943
Total Pages615
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size13 MB
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