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________________ ३१२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ८, ३३९. संजदासजदा संखेज्जगुणा ॥ ३३९॥ मणुसगदि मोत्तूण अण्णत्थ खझ्यसम्मादिट्ठिसंजदासंजदाणमभावा । असंजदसम्मादिट्ठी असंखेज्जगुणा ॥ ३४०॥ को गुणगारो ? पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाणि पलिदोवमपढमवग्गमूलाणि । असंजदसम्मादिट्ठि-संजदासंजद-पमत्त-अप्पमत्तसंजदट्ठाणे खइयसम्मत्तस्स भेदो णत्थि ॥ ३४१ ॥ एदस्स अहिप्पाओ- जेण खइयसम्मत्तस्स एदेसु गुणट्ठाणेसु भेदो णत्थि, तेण णत्थि सम्मत्तप्पाबहुगं, एयपयत्तादो । एसो अत्थो एदेण परूविदो होदि । वेदगसम्मादिट्ठीसु सव्वत्थोवा अप्पमत्तसंजदा ॥ ३४२ ॥ कुदो ? तप्पाओग्गसंखेजपमाणत्तादो । क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें प्रमत्तसंयतोंसे संयतासंयत जीव संख्यातगुणित हैं ॥३३९॥ क्योंकि, मनुष्यगतिको छोड़कर अन्य गतियों में क्षायिकसम्यग्दृष्टि संयतासंयत जीवोंका अभाव है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियोंमें संयतासंयतोंसे असंयतसम्यग्दृष्टि जीव असंख्यातगुणित हैं ॥ ३४०॥ गुणकार क्या है ? पल्योपमका असंख्यातवां भाग गुणकार है, जो पल्योपमके असंख्यात प्रथम वर्गमूलप्रमाण है। क्षायिकसम्यग्दृष्टियों में असंयतसम्यग्दृष्टि, संयतासंयत, प्रमत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत गुणस्थानमें क्षायिकसम्यक्त्वका भेद नहीं है ॥ ३४१ ।। इस सूत्रका अभिप्राय यह है कि इन असंयतसम्यग्दृष्टि आदि चारों गुणस्थानोंमें क्षायिकसम्यक्त्वकी अपेक्षा कोई भेद नहीं है, इसलिए उनमें सम्यक्त्वसम्बन्धी अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि, उन सबमें क्षायिकसम्यक्त्वरूप एक पद ही विवक्षित है। यह अर्थ इस सूत्रके द्वारा प्ररूपित किया गया है। वेदकसम्यग्दृष्टियोंमें अप्रमत्तसंयत जीव सबसे कम हैं ॥ ३४२ ।। क्योंकि, उनका तत्प्रायोग्य संख्यातरूप प्रमाण है। १ततः संयतासंयताः संख्येयगुणाः । स. सि. १,८. २ असंयतसम्यग्दृष्टयोऽसंख्येयगुणाः । स. सि. १, ८. ३सायोपशमिकसम्यग्दृष्टिषु सर्वतः स्तोकाः अप्रमत्ताः। स. सि. १,८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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