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________________ १, ८, ६२. ] अप्पा बहुगागमे मणुस - अप्पाबहुगपरूवणं [ २७५ अप्पमत्तसंजदा अक्खवा अणुवसमा संखेज्जगुणा ॥ ५९ ॥ मणुस मणुसपज्जत्ताणं ओघम्हि उत्त- अप्पमत्तरासी चेव होदि । मणुसिणीसु पुण तप्पा ओग्गसंखेज्जमेत्तो होदि । सेसं सुगमं । पमत्तसंजदा संखेज्जगुणा ॥ ६० ॥ एदं पि सुगमं । संजदासंजदा' संखेज्जगुणां ॥ ६१ ॥ मणुस - मणुसपज्जत्तएस संजदासंजदा संखेज्जकोडिमेत्ता । मणुसिणीसु पुण तप्पा ओग्गसंखेज्जरूवमेत्ता त्ति घेत्तव्वा, वट्टमाणकाले एत्तिया त्ति उवदेसाभावा । सेस सुगमं । सासणसम्मादिट्टी संखेज्जगुणा ॥ ६२ ॥ कुदो ? तत्तो संखेज्जगुणको डिमेत्तत्तादो । मणुसिणीसु तदो संखेज्जगुणा, तप्पा ओग्गसंखेज्जरुवमेत्तत्तादो । सेसं सुगमं । तीनों प्रकारके मनुष्यों में सयोगिकेवली से अक्षपक और अनुपशामक अप्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं ॥ ५९ ॥ प्ररूपणा ही हुई अप्रमत्तसंयतोंकी राशि ही मनुष्य -सामान्य और मनुष्यपर्याप्तक अप्रमत्तसंयतोंका प्रमाण है । किन्तु मनुष्यनियोंमें उनके योग्य संख्यात भागमात्र राशि होती है। शेष सूत्रार्थ सुगम है । तीनों प्रकारके मनुष्यों में अप्रमत्त संयतयों से प्रमत्तसंयत संख्यातगुणित हैं ॥६०॥ यह सूत्र भी सुगम है । तीनों प्रकारके मनुष्यों में प्रमत्तसंयतों से संयतासंयत संख्यातगुणित हैं ।। ६१ ॥ मनुष्य- सामान्य और मनुष्य-पर्याप्तकों में संयतासंयत जीव संख्यात कोटिप्रमाण होते हैं । किन्तु मनुष्यनियोंमें उनके योग्य संख्यात रूपमात्र होते हैं, ऐसा अर्थ ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि, वे इतने ही होते हैं, इस प्रकारका वर्तमान कालमें उपदेश नहीं पाया जाता । शेष सूत्रार्थ सुगम है । तीनों प्रकारके मनुष्योंमें संयतासंयतोंसे सासादनसम्यग्दृष्टि संख्यातगुणित हैं ॥ ६२ ॥ क्योंकि, वे संयतासंयतोंके प्रमाणसे संख्यातगुणित कोटिमात्र होते हैं। मनुष्यनियोंमें सासादन सम्यग्दृष्टि जीव मनुष्य- सामान्य और मनुष्य पर्याप्तक सासादनसम्यटियोंसे संख्यातगुणित होते हैं, क्योंकि, उनका प्रमाण उनके योग्य संख्यात रूपमात्र है। शेष सूत्रार्थ सुगम है । Jain Education International २ ततः संख्येयगुणाः संयतासंयताः । स. सि. १,८, १ प्रतिषु ' संजदा ' इति पाठः । ३ सासादनसम्यग्दृष्टयः संख्येयगुणा । स. सि. १,८० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001399
Book TitleShatkhandagama Pustak 05
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages481
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size9 MB
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