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________________ (१२) षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृ.नं. क्रम नं. विषय तीन लोकोंके संख्यातवें भाग १०२ बादर तेजस्कायिक और वायु क्यों है, इस शंकाका समाधान २४१ कायिक जीवोंके वैक्रियिक९५ सामान्य एवं पर्याप्त और अप समुद्धातसम्बन्धी स्पर्शनर्याप्त विकलत्रय जीवोंका वर्त क्षेत्रका सोपपत्तिक वर्णन २४९-२५० मानकालिक स्पर्शनक्षेत्र २४२ १०३ बादर पृथिवीकायिक, जल९६ उक्त तीनों प्रकारके विकलत्रय कायिक, अग्निकायिक और जीवोंके अतीतकालिक स्पर्शन वनस्पतिकायिकप्रत्येकशरीर क्षेत्रका सोपपत्तिक निरूपण २४३ पर्याप्त जीवोंके वर्तमान और ९७ पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियपर्याप्त अतीतकालिक स्पर्शनक्षेत्रका मिथ्यादृष्टि जीवोंके वर्तमान तथा तदन्तर्गत शंका-समातथा अतीतकालिक स्पर्शन धानोंका सप्रमाण वर्णन २५०-२५२ क्षेत्रका सोपपत्तिक निरूपण २४४१०४ बादर वायुकायिकपर्याप्त ९८ सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे जीवोंका वर्तमान तथा अतीतलेकर अयोगिकेवली गुणस्थान कालिक स्पर्शनक्षेत्र २५२-२५३ तक प्रत्येक गुणस्थानवर्ती १०५ वनस्पतिकायिक, निगोद, तथा पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रिय उनके बादर, सूक्ष्म और पर्याप्त जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंका स्पर्शन९९ लब्ध्यपर्याप्त पंचेन्द्रिय जीवोंका क्षेत्र २५३-२५४ वर्तमान और अतीतकालिक १०६ त्रसकायिक और त्रसकायिक पर्याप्त जीवोंके मिथ्यादृष्टि स्पर्शनक्षेत्र २४६ __ आदि चौदहों गुणस्थानों ३ (कायमार्गणा) २४७-२५५ सम्बन्धी स्पर्शनक्षेत्रका निरूपण २५४ १०० सामान्य तथा बादर पृथिवी- १०७ त्रसकायिक लब्ध्यपर्याप्त कायिक, जलकायिक, अग्नि जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र २५४-२५५ कायिक, वायुकायिक और ४ योगमार्गणा २५५-२७१ बादरवनस्पतिकायिक प्रत्येक १०८ पांचों मनोयोगी और पांचों शरीर, तथा इन्हींके अपर्याप्त वचनयोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंका जीव, सूक्ष्म पृथिवीकायिक, वर्तमान और अतीतकालिक सूक्ष्मजलकायिक, सूक्ष्मआग्नि स्पर्शनक्षेत्र २५५-२५६ कायिक,सूक्ष्मवायुकाायक और १०९ सासादनसम्यग्दृष्टि गुणइन्हींके पर्याप्त तथा अपर्याप्त स्थानसे लेकर सयोगिकेवली जीवोंका स्पर्शनक्षेत्र २४७ गुणस्थान तक प्रत्येक गुण१०१ उक्त जीवोंने तिर्यग्लोकसे स्थानवर्ती पांचों मनोयोगी संख्यातगुणा क्षेत्र कैसे स्पर्श और पांचों वचनयोगी जीवोंका किया है, यह बतलाते हुए स्पर्शनक्षेत्र २५६-२५७ आठों पृथिवियोंकी लम्बाई ११० मिथ्यादृष्टि गुणस्थानसे लेकर चौड़ाई और मोटाईका निरूपण २४७-२४८/ क्षीणकषायगुणस्थान तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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