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________________ ३७२ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, ५, ६७. उववज्जिय सव्वजहण्णकालमच्छिय पुव्वुत्ताणमण्णदरं गदस्त खुद्दाभवग्गहणमत्तअपज्जत्तकालुवलंभा। उकस्सेण अंतोमुहुत्तं ।। ६७ ॥ कुदो १ पुव्वुत्ताणमण्णदरस्स पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तएसु उववज्जिय सण्णिअसण्णि-अपज्जत्तएसु अट्ठट्ठवारमुप्पज्जिय हिस्सरिदूण पुवुत्ताणमण्णदरं गदस्स अंतोमुहुत्तमेत्तुक्कस्सकालुवलंभा । मणुसगदीए मणुस-मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु मिच्छादिट्ठी केवचिरं कालादो होति, णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा ॥ ६८ ॥ कुदो ? तिविधेसु वि मणुस्सेसु मिच्छादिट्ठि-विरहिदकालाणुवलंभा । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहुत्तं ॥ ६९ ॥ कुदो ? सम्मामिच्छादिविस्स असंजदसम्मादिट्ठिस्स संजदासंजदस्स वा संकिलेस और वहां पर सर्व जघन्य काल रह कर, पूर्वोक्त एकेन्द्रियादिकों से किसी एक को प्राप्त हुए जीवके क्षुद्रभवग्रहणमात्र अपर्याप्तकाल पाया जाता है। एक जीवकी अपेक्षा पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक तिर्यंचका उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त क्योंकि, पूर्वमें कहे गये एकेन्द्रियादिकों से किसी एकके पंचेन्द्रियतिर्यंच लब्ध्य. पर्याप्तकोंमें उत्पन्न होकर, संक्षी और असंज्ञी लब्ध्यपर्याप्तकोंमें आठ आठ वार उत्पन्न होकर, और उनमेंसे निकलकर, पूर्वोक्त जीवों में से किसी एक जीवकी पर्यायको प्राप्त हुए जीवके अन्तर्मुहूर्तप्रमाण उत्कृष्ट काल पाया जाता है । ___मनुष्यगतिमें, मनुष्य, मनुष्यपर्याप्त और मनुष्यनियोंमें मिथ्यादृष्टि जीव कितने काल तक होते हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वकाल होते हैं ॥ ६८॥ ___ क्योंकि, तीनों ही प्रकारके मनुष्योंमें मिथ्यादृष्टि जीवोंसे रहित कोई काल नहीं पाया जाता है। ___एक जीवकी अपेक्षा उक्त तीनों प्रकारके मिथ्यादृष्टि मनुष्योंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है ॥ ६९ ॥ क्योंकि, सम्यग्मिथ्यादृष्टिके, अथवा असंयतसम्यग्दृष्टिके, अथवा संयतासंयतके १ मनुष्यगतौ मनुष्येसु मिथ्यादृष्टे नाजीवापेक्षया सर्वः कालः । स. सि. १, ८. २ एकजीवं प्रति जघन्येनान्तर्मुहूर्तः । स. सि. १, ८. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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