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________________ (५८) षट्खंडागमकी प्रस्तावना क्रम नं. विषय पृ. नं. क्रम नं. विषय पृ. नं. २११ शुक्ललेश्यावाले सासादनसम्य केवलीगुणस्थान तकके भव्य ग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और जीवोंका काल ४८० असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंका २१९ अभव्य जीवोंका नाना और पृथक् पृथक् काल निरूपण ४७२-४७३ एक जीवकी अपेक्षा काल २१२ शुक्ललेश्यावाले संयतासंगत, निरूपण प्रमत्तसंयत और अप्रमत्त १२ सम्यक्त्वमार्गणा ४८१-४८५ संयतोंके नाना और एक २२० सामान्य सम्यग्दृष्टि और जीवकी अपेक्षालेश्यापरिवर्तन, गुणस्थानपरिवर्तन और मरण क्षायिकसम्यग्दृष्टि जीवों में असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे की अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट लेकर अयोगिकेवली गुणस्थान कालका निरूपण ४७३-४७५ तकके जीवोंका काल २१३ तेज, पद्म और शुक्ल लेश्या २२१ असंयतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानसे सम्बन्धी एक एक समयके लेकर अप्रमत्तसंयत गुणस्थान भंगोंका निरूपण तकके वेदकसम्यग्दृएि जीवोंका २१४ शुक्ल लेश्यावाले चारों उप काल शामक, चारों क्षपक और सयोगिकेवलीका काल वर्णन ४७/२२२ असंयत और संयतासंयत गुणस्थानवर्ती असंयतसम्य११ भव्यमार्गणा ४७६-४८० ग्दृष्टि और संयतासंयत जीवों२१५ भन्यसिद्धिक मिथ्यादृष्टि का नाना जीवोंकी अपेक्षा जीवोंका नाना और एक जघन्य और उत्कृष्ट काल ४८२ जीवकी अपेक्षा सोदाहरण २२३ उक्त सम्यग्दृष्टि जीवोंका एक जघन्य और उत्कृष्ट काल जीवकी अपेक्षा सोदाहरण २१६ मिथ्यात्वके अनादि और अकृ जघन्य और उत्कृष्ट काल ४८३ त्रिम होनेसे उसका विनाश नहीं होना चाहिए; कारण २२४ प्रमत्तसंयत गुणस्थानसे लेकर उपशान्तकषाय गुणस्थान रहित वस्तुका विनाश नहीं तकके उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंहोता. अतः अज्ञान या कर्म के नाना और एक जीवकी बन्धका विनाश नहीं होना अपेक्षा जघन्य और उत्कृष्ट चाहिए, इत्यादि अनेक अपूर्व शंकाआकाअद्वितीय समाधान कालोका सोदाहरण निरूपण ४८३-४८४ २२५ सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्य२१७ मोक्षको जानेके कारण निरन्तर ग्मिथ्यादृष्टि और मिथ्यादृष्टि व्ययशील भव्य राशिका विच्छेद क्यों नहीं होता, इस जीवोंका पृथक् पृथक् कालवर्णन ४८४.४८५ शंकाका समाधान ४७८ १३ संज्ञिमार्गणा २१८ सासादनसम्यग्दाष्ट गुण ४८५-४८६ स्थानसे लेकर अयोगि २२६ संज्ञी मिथ्यादष्टि जीवोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001398
Book TitleShatkhandagama Pustak 04
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1942
Total Pages646
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size14 MB
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