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________________ १७६ ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [ १, २, १९. कालो सत्तमपुढविपक्खेवअवहारकालपमाणेण सेढितदियवग्गमूलमादि काऊण जाव छहमवग्गमूलो त्ति चउण्हं वग्गाणं अण्णोण्णभासेणुप्पण्णरासिमेत्तो हवदि । चउत्थपुढविपक्खेवअवहारकालो सत्तमपुढविपक्खेवअवहारपमाणेण सेढितदियवग्गमूलमादि काऊण जाव अट्ठमवग्गमूलो त्ति ताव छण्णं वग्गाणं अण्णोण्णब्भासेणुप्पण्णरासिमेत्तो हवदि । तदियपुढविपक्खेवअवहारकालो सत्तमपुढविपक्ववअवहारपमाणेण सेढितदिय. वग्गमूलमादि काऊण जाव दसमवग्गमलो ति ताव अट्ठण्हं वग्गाणं अण्णोण्णब्भासेणुप्पण्णरासिमेत्तो हवदि । विदियपुढविपक्खेवअवहारकालो सत्तमपुढविपक्खेवअवहारपमाणेण सेढितदियवग्गमूलप्पहुडि दसण्हं वग्गाणमण्णोण्णब्भासेणुप्पण्णरासिमेत्तो हवदि । सामण्णअवहारकालो सत्तमपुढविपक्खेवअवहारकालपमाणेण पढमपुढविविक्खंभसूचिगुणिदसेढिविदियवग्गमूलमेत्तो हवादि । पुणो एदाओ सव्यसलागाओ एगई करिय सत्तमपुढविपक्खेवअवहारकालं गुणिदे पढमपुढविमिच्छाइटिअवहारकालो होदि । अवहारकाल जगश्रेणीके तृतीय वर्गमूलमात्र होता है ( ६५५३६ =२) पांचवीं पृथिवीका प्रक्षेप अघहारकाल सातवीं पृथिवीके प्रक्षेपरूप अवहारकालकी अपेक्षा जगश्रेणीके तीसरे वर्गमूलसे लेकर छठे वर्गमूलपर्यन्त चार वर्गौके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो तन्मात्र है ( १३१९९३ = ४ ) चौथी पृथिवीका प्रक्षेप अवहारकाल सातवीं पृथिवीके प्रक्षेपरूप अवहार. कालकी अपेक्षा जणश्रेणीके तीसरे वर्गमूलसे लेकर आठवें वर्गमूलपर्यंत छह वर्गौके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो तन्मात्र है ( २६२१४४ = ८)। तीसरी पृथिवीका प्रक्षेप अवहारकाल सातवीं पृथिवीके प्रक्षेपरूप अवहारकालकी अपेक्षा जगश्रेणी के तीसरे वर्गमूलसे लेकर दशवें वर्गमूलपर्यन्त आठ वर्गौके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो तन्मात्र है (५२१३८८ = १६)। दुसरी पृथिवीका प्रक्षेप अवहारकाल सातवीं पृथिवीके प्रक्षेपरूप अवहारकालकी अपेक्षा जगश्रेणीके तीसरे वर्गमूलसे लेकर दश वर्गौके परस्पर गुणा करनेसे जो राशि उत्पन्न हो तन्मात्र है ( १०४६५७६ = ३२)। सामान्य अवहारकाल सातवीं पृथिवीके प्रक्षेपरूप अवहारकालके प्रमाणकी अपेक्षा प्रथम पृथिवीकी मिथ्यादृष्टि विष्कंभसूचीसे जगश्रेणीके द्वितीय वर्गमूलको गुणित करके जो लब्ध आवे उतना है (१२८४ १९४ = १९३)। अनन्तर इन सर्व शलाकाओंको एकत्रित करके उससे सातवीं पृथिवीके प्रक्षेप अवहारकालके गुणित करने पर पहली पृथिवीका मिथ्यादृष्टि अहहारकाल आता है। उदाहरण-१+२+४+ ८+ १६ + ३२ + १९३ = २५६; ३२७६८.. .८३८८६०८ प्र. प. मि. अव. ३२७६८ ४ २५६ = १९३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001397
Book TitleShatkhandagama Pustak 03
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1941
Total Pages626
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size15 MB
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