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________________ वडिबंधे भागाभागो २६६ ३०४. णिरएसु असंखेंजगुणवड्डि-हाणी णियमा अस्थि । सेसपदा भयणिज्जा । मणुसअपज्जत्त-वेउन्वि०मि०-आहार-आहारमि०-अवगद०-सुहुमसंप० - उवसम०सासण-सम्मामि० सव्वपगदीणं सव्वपदा भयणिजा । एदेण कमेण णेदव्वं । एवं णाणाजीवेहि भंगविचयं समत्तं । भागाभागो ३०५. भागाभागाणुगमेण दुवि०-अोधे० आदे। ओघेण पंचणा०-णवदंसणा०मिच्छ०-सोलसक०-भय-दु०-ओरालि०-तेजा-क०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि० -पंचंत० असंखेंजगुणवड्डिबंधगा सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? दुभागो सादिरेयो । असंखेंजगुणहाणिबंधगा सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? दुभागो देसूणो । तिण्णिवड्डि-हाणिअवट्टि० सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? असंखेंजदिभागो। अवत्त०बंध० सव्वजीवाणं केवडि० ? अणंतभागो । एर्सि' अणंतभागवड्डि-हाणि० अत्थि तेसिं सव्वजीवाणं केवडियो भागो ? अणंतभागो । सेसाणं पगदीणं एकवड्डि० के० १ दुभागो सादिरेगो । एक्कहाणि० दुभागो देसू० । सेसपदा सव्वजीवाणं केवडियो भागो० ? असंखेंजदिभागो। ३०४. नारकियोंमें असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यातगुणहानिवाले जीव नियमसे हैं। शेष पद भजनीय हैं। मनुष्य अपर्याप्र, वैक्रियिकमिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, अपगतवेदवाले, सूक्ष्मसाम्परायसंयत, उपशमसम्यग्दृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंमें सब प्रकृतियोंके सब पद भजनीय हैं । इस क्रमसे ले जाना चाहिए । विशेषार्थ-मनुष्य अपर्याप्त मादि सान्तर मार्गणाएँ हैं, इसलिए इनमें सब प्रकृतियोंके सब पद भजनीय होना स्वाभाविक है शेष कथन स्पष्ट ही है। . इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भगविचय समाप्त हुआ। भागाभाग ३०५. भागाभागानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी असंख्यातगुणवृद्धिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं? साधिक द्वितीय भागप्रमाण हैं। असंख्य ख्यातगुणहानिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? कुछ कम द्वितीय भागप्रमाण हैं ? तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अवक्तव्यपदके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं । जिनकी अनन्तभागवृद्धि और अनन्तभागहानि है, उनके इन पदोंवाले जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? अनन्तवें भागप्रमाण हैं। शेष प्रकृतियोंकी एक वृद्धिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? साधिक द्वितीय भागप्रमाण हैं। एक हानिके बन्धक जीव सब जीवोंके कितने भागप्रमाण हैं ? कुछ कम द्वितीय भागप्रमाण हैं। शेष पदोंके बन्धक १. ता०प्रतौ 'केवडि ? अणंतभागो। एसिं अणंतभागो एसिं' आ०प्रतौ 'केवडि ? अणंता भागा। एसि अणंतभागो सिं' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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