SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 228
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पदणिक्खेवे सामित्तं २०७ वट्टी अवठ्ठाणं च पंचिंदियभंगो। उक्क० हाणी [ कस्स०] ? मदो' सुहमेइंदियपत्तगेसु उववण्णो तप्पा०जह० जोगट्ठाणे तीसदिणामाए बंधगो जादो तस्स उक्क. हाणी । २३६. आदाव० उक्क० वड्डी कस्स०? यो अट्ठविध० तप्पाओग्गजह०जोगट्ठाणादो उक० जोगट्टाणं गदो छव्वीसदिणामाए सह सत्तविधबंधगो जादो तस्सउक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स ? यो सत्तविध उक्क० जोगी मदो बादरेइंदियपजत्तएसु उववण्णो जहण्णजोगट्ठाणे पडिदो छव्वीसदिणामाए बंधगो जादो तस्स उक्क० हाणी । उक० अवट्ठाणं कस्स० ? जो सत्तविधबंधगो उक० जोगी पडिभग्गो अट्ठविधबंधगो जादो । ताधे चेव छव्वीसदिणामाए बंधदि । उजोव० उक्क० बड्डी आदावभंगो। उक्क० हाणी० [ कस्स ] ? मदो बादरएसु उववण्णो तीसदिणामाए बंधगो जादो तस्स उक्क. हाणी। उक० अवट्ठाणं कस्स० ? यो सत्तविध० उक्क. जोगी पडिभग्गो अट्ठविधबंधगो जादो । ताधे वि ताओ चेव छव्वीसदिणामाओ बंधदि णो तीसं। केण कारणेण ? तं चेव कारणं । एदेण कारणेण छव्वीसदिणामाओ बंधभाणगस्स उक्क० अवट्ठाणं० णो तीस दि० बंध० । स्वामी कौन है ? जो मरकर सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हुआ और तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानको प्राप्त होकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंका बन्ध करने लगा, वह उनकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। २३६. आतपकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला जो जीव तत्प्रायोग्य जघन्य योगस्थानसे उत्कृष्ट योगस्थानको प्राप्त होकर नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंके साथ सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करने लगा, वह उसकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है? सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव मरा और बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें उत्पन्न होकर जघन्य योगस्थानको प्राप्त हुआ तथा नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंका बन्ध करने लगा, वह उसकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है । उसके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर आठ प्रकारके कर्मोंका बन्ध करने लगा,वह आतपके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। वह उस समय नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंका बन्ध करता है। उद्योतकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी आतपके समान है । उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो जीव मरा और बादरोंमें उत्पन्न होकर नामकर्मकी तीस प्रकृतियोंका बन्ध करने लगा,वह उद्योतकी उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उसके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी कौन है ? सात प्रकारके कर्मो का बन्ध करनेवाला उत्कृष्ट योगसे युक्त जो जीव प्रतिभग्न होकर आठ प्रकारके कर्मो का बन्ध करने लगा,वह उसके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। वह उस समय भी नामकर्मकी उन्हीं छब्बीस प्रकृतियोंका बन्ध करता है। तीसका नहीं । कारण क्या है ? वही पूर्वोक्त कारण है। इस कारणसे नामकर्मकी छब्बीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला- जीव उद्योतके उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामी है। तीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाला जीव नहीं। १. ता०प्रती 'हाणी [कस्स ? ] मदो' इति पाठः । २. आ०प्रती 'यो अवहिद तप्पाओग्गजह०जोगहाणादो' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy