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________________ भुजगारबंधे फोसणाणुगमो १६५ आदि मर कर देवोंमें उत्पन्न होते हैं,उनके भी प्रथम समयमें इनका अवक्तव्यपद सम्भव है, इसलिए इस अपेक्षासे इनके अवक्तव्य पदवालोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है । देवोंमें विहार आदिके समय और नारकियों व देवोंके तिर्यञ्चों व मनुष्योंमें मारणान्तिक समुद्धातके समय स्त्रीवेद आदि प्रकृतियोंके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनके इन तीन पदवाले जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे भागप्रमाण कहा है । तथा इनका अवक्तव्यपद देवोंके विहारादिके समय भी सम्भव है, इसलिए इनके इस पदवाले जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। दो आयु आदिके सब पदवालोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है,यह स्पष्ट ही है । शेष दो आयु और मनुष्यगति आदिके सब पद देवोंमें विहारादिके समय भी सम्भव हैं, इसलिए इनके सब पदवालोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। तिर्यश्चों और मनुष्योंके नारकियोंमें मारणान्तिक समुद्धातके समय भी नरकगतिद्विकके तीन पद और देवोंमें मारणान्तिक समुद्धात करते समय भी देवगतिद्विकके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इनके तीन पदवालोंका स्पर्शन त्रसनालोके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है । मात्र ऐसे समयमें इन प्रकृतियोंका अवक्तव्यपद नहीं होता, इसलिए इनके इस पदवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके मान कहा है। देवामें विहारादिकं समय और एकन्द्रियाम मारणान्तिक समुद्धातक समय औदारिकशरीरके तीन पद सम्भव हैं, इसलिए इसके तीन पदवाले जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण कहा है । तथा इसका अवक्तव्यपद नारकियों और देवोंके प्रथम समयमें भी सम्भव है, इसलिए इसके इस पदवाले जीवोंका स्पर्शन सनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है । मनुष्यों और तिर्यञ्चोंके नारकियों और देवोंमें मारणान्तिक समुद्धात करते समय भी क्रियिकद्विकके तीन सम्भव हैं, इसलिए इनके इन पदवाले जीवोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है। पर ऐसे समयमें इनका अवक्तव्यपद सम्भव न होनेसे इस अपेक्षासे स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। बादर आदिके सब पदोंका स्पर्शन देवोंके विहारादिके समय और नीचे कुछ कम छह राजू व ऊपर कुछ कम सात राजूप्रमाण स्पर्शनके समय भी सम्भव होनेसे इनके सब पदवालोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ व कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण कहा है । मात्र बादर प्रकृतिका अवक्तव्यपद एक तो मारणान्तिक समुद्धातके समय नहीं होता । दूसरे इसे करनेवाले जीव अल्प हैं, इसलिए इसके इस पदवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । सूक्ष्म आदिके तीन पदवालोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और अतीत स्पर्शन सर्व लोकप्रमाण,प्राप्त होनेसे यह उक्तप्रमाण कहा है । तथा इनका अवक्तव्यपद मारणान्तिक समुद्भात आदिके समय नहीं होता, इसलिए इनके इस पदवालोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है। अयशःकीर्तिक तीन पदवालोंका स्पशेन जो त्रसनालीके कुछ कम आठ बटें चौदह भाग और सर्व लोकप्रमाण कहा है सो इसे ज्ञानावरणके समान घटितकर लेना चाहिए । तथा इसके अवक्तव्य पदवाले जीवोंका स्पर्शन त्रसनाली के कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण यशःकीर्तिके समान घटित कर लेना चाहिए । तीर्थङ्करप्रकृतिके तीन पद देवोंकेविहारादिके समय भी सम्भव हैं, इसलिए इसके इन पदवाले जीवों का स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण कहा है । तथा ऐसे समय इसका अवक्तव्यपद सम्भव नहीं है, इसलिए इसके अवक्तव्यपदवाले जीवों का स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है । यहाँ पाँच मनोयोगी आदि अन्य जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं उनमें यह स्पर्शन अविकल बन जाता है, इसलिए उनमें पञ्चन्द्रियों के समान इसके जाननेकी सूचना की है। तथा काययोगी आदि मार्गणाओं में ओघप्ररूपणा घटित हो जाती है, इसलिए उनमें ओघके समान जाननेकी सूचना की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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