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________________ ३८२ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे संजलणलोमे० असं गु० । माया० विसे । कोघे० विसे । माणे० विसे । पञ्चक्खा०लोभे० असं०गु० । माया० विसे । कोधे० विसे० । माणे० विसे । एवं अपचक्खाण०४ । आभिणि-परिभो० असं०गु०। चक्खु० असं०गु० । सुद०. अचक्खु०-भोगत. असं०गु०। ओधिणा०-ओधिदं०-लाभंत. असं०। मणपज०दाणंत० असं० । थीण विसे० । णवंस० असं० । इथि० असं० । पुरिस० असं० । अरदि० असं । सोग० असं। भय० असं० । दुगुं. असं० । णिहाणिद्दा० असं० । पयलापयला० असं० । णिद्दा० असं० । पयला० असं० । णीचा० असं० । अजस० विसे । णिरय० असं० । तिरिक्ख० असं० । रदि० असं० । हस्स० असं० । इनसे अनन्तानुबन्धी क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे अनन्तानुबन्धी मानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं । इनसे संज्वलन लोभके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे संज्वलनमायाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे संज्वलन क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे संज्वलन मानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे प्रत्याख्यानावरण लोभके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे प्रत्याख्यानावरण मायाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं । इनसे प्रत्याख्यानावरण क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं। इनसे प्रत्याख्यानावरण मानके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं । इसी प्रकार अप्रत्याख्यानावरण चतुष्कके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थानोंका अल्पबहुत्व है। आगे आभिनिबोधिकज्ञानावरण और परिभोगान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे चक्षुदर्शनावरणके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण और भोगान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसॉन स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे अवधिज्ञानावरण, अवधिदर्शनावरण और लाभान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे मनःपर्ययज्ञानावरण और दानान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे स्त्यानगृद्धिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन हैं । इनसे नपुंसकवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे स्त्रीवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे पुरुषवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अरतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे शोकके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे भयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे जुगुप्साके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे निद्रानिद्राके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे प्रचलाप्रचलाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे निद्राके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे प्रचलाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे नीचगोत्रके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे अयश कीर्तिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे होन हैं। इनसे नरकगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे तिर्यश्चगतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे रतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे हास्यके अनुभागवन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे नरकायुके अनुभागबन्धाध्यव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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