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________________ १२ महापंधे अणुभागबंधाहियारे असंखें। अवत्त० कॅत्ति ? संखें। सादासाद०--अपञ्चक्खाण०४-चदुणोक--- देवाउ०--मणुसगदिपंच०--थिरादितिरिणयु० चचारिप० के १ असंखें । मणुसाउ० आहारदुगं सव्वप० के १ संखें। एवं ओधिदं०-सम्मादि०-वेदग०-सम्मामिच्छादिहि त्ति । णवरि वेदग०-सम्मामि० धुविगाणं अवच० गत्थि। ५०६. संजदासंज. धुविगाणं तिण्णिपदा परियत्तमाणियाणं चत्वारिपदा के ? असंखे० । तित्थ० सव्वप० के० १ संखे । ५०७. किरण--णीलाणं तित्थ. तिएणप० के १ संखें । तेउ--पम्मासु धुविगाणं' तिएिणपदा के ? असंखें । पञ्चक्खा०४ --देवगदि०४--तित्थ० अवत्त० संखेजा। सेसपदा० असंखें। सेसाणं सव्वप० असंखें। मणुसाउ०-आहार०२ सव्वप० के० १ संखें। सुकाए पंचणा०-छदंस०-अहक०-भय-दु०-दोगदि-पंचजादिचदुसरीर-दोअंगो०-वण्ण०४-दोआणु०-अगु०४-पसत्यवि०-तस०४-णिमि०-तित्थ.. पंचंत० तिएिणप० के ? असं०। अवत्त० के १ संखें । दोआउ०-आहार०२ सव्वपदा के ? संखें । सेसाणं सव्वप० के ? असंखें । ५०८. खइग० पंचणा०-छदंस०--बारसक०--पुरिस०-भय-दु०-दोगदि-पंचिं०कितने हैं ? संख्यात हैं। सातावेदनीय, असातावेदनीय, अप्रत्याख्यानावरण चार, चार नोकषाय, देवायु, मनुष्यगतिपञ्चक और स्थिर आदि तीन युगलके चार पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। मनुष्याय और आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं? संख्यात हैं। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि वेदकसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिध्यादृष्टि जीवोंमें ध्रुववन्धवाली प्रकृतियों का प्रवक्तव्यपद नहीं है। ५०६. संयतासंयत जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके और परिवर्तमान प्रकृतियोंके चार पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। ५०७. कृष्ण और नील लेश्यामें तीर्थङ्कर प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। पीत और पद्मलेश्यामें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। प्रत्याख्यानावरण चार, देवगतिचतुष्क और तीर्थङ्कर प्रकृतिके प्रवक्तव्य पदके बन्धक जीव संख्यात हैं तथा शेष पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। शेष प्रकृतियों के सब पदोंके बन्धक जीव असंख्यात हैं। मनुष्यायु और आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शुक्ललेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कषाय, भय, जुगुप्सा, दो गति, पाँच जाति, चार शरीर, दो आङ्गोपाङ्ग, वर्णचतुष्क, दो आनुपूर्वी, अगुरुलघुचतुष्क, प्रशस्त विहायोगति, त्रसचतुष्क, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तरायके तीन पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। प्रवक्तव्यपदके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। दो आयु और आहारकद्विकके सब पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। शेष सब प्रकृतियोंके सव पदोंके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। ५०८. क्षायिकसम्यक्त्वमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पुरुषवेद, भय, १. श्रा० प्रती धुधिगाणं के० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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