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________________ २४५ भुजगारबंधे अंतराणुगमो अंतराणुगमो ४५८. अंतराणु० दुवि०-ओघे० आदे० । ओघे० पंचणा०-छदंस०-चदुसंज०भय-दु०-तेजा-क०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत० भुज०-अप्प० बंधतरं केव० होदि ? ज० ए०, उ० अंतो० । अवहि० ज० ए०, उ० असंखेज्जा लोगा। अवत्त० ज० अंतो०, उ० अदपो० । थीणगि०--मिच्छ०--अणंताणु०४ भुज०-अप्प० ज० ए०, उ० बेछावहि० देसू० । अवहि०-अवत्त० णाणाभंगो। सादासाद०-हस्स-रदि-अरदिसोग-थिराथिर-सुभासुभ-जस०-अजस० तिषिणपदा णाणा०भंगो। अवत्त० ज० उ० अंतो। अहक. भुज०-अप्प० ज० ए०, उ० पुव्वकोडी दे० । अवहि-अवत्त० णाणा भंगो । इत्थि० अवत्त० ज० अंतो०, उ० बेछावहि० दे० । सेसाणं पदाणं थीणगिदिभंगो । णस०-पंचसंठा०-पंचसंघ०-अप्पसत्थवि०-दुस्सर-अणादें भुज०-अप्प० ज० ए०, अवत्त० ज० अंतो०, उ० तिएहं पि बेछावहिसाग० सादि० तिरिण पलि. देसू० । अवहि० गाणाभंगो । पुरिस० भुज०--अप्प० ज० ए०, उ. अंतो० । अवहि० गाणाभंगो। अवत्त० ज० अंतो०, उ० बेछावहि० सादि० । तिरिणाउ'०प्रकृतियोंके प्रवक्तव्य अनुभागबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है, यह स्पष्ट ही है। शेष कथन स्पष्ट ही है। अन्तरानुगम ४५८. अन्तरानुगम दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार और अल्पतरबन्धका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहर्त है। अवस्थितबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर असंख्यात लोकप्रमाण है। प्रवक्तव्यबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व, और अनन्तानुबन्धी चारके भुजगार और अल्पतरबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दो छियासठ सागरप्रमाण है। अवस्थित और अवक्तव्यबन्धका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, हास्य, रति, अरति, शोक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, यशःकीर्ति और अयशःकीर्तिके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। इनके प्रवक्तव्यवन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। आठ कषायों के भुजगार और अल्पतरबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटिप्रमाण है। अवस्थित और अवक्तव्यबन्धका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। वीवेदके प्रवक्तव्यबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम दोछियासठ सागरप्रमाण है । शेष पदोंका भङ्ग स्त्यानगृद्धिके समान है । नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुःस्वर और अनादेयके भुजगार और अल्पतरबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है। अवक्तव्यबन्धका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और तीनों ही का उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य अधिक दो छियासठ सागरप्रमाण है । अवस्थितबन्धका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। पुरुषवेदके भुजगार और अल्पतरबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है । अवस्थितबन्धका भङ्ग ज्ञानावरण १. ता. पा. प्रत्योः सादि० तिण्णिाउ० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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