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________________ २२२ महाबंधे अणुभागबंधाहियारे तिरिक्ख० अणंतगु० । सव्वतिव्वाणुभागं पंचिंदिय० । एइंदि० अणंतगुणही। बेइंदि० अणंतगु० । तेइंदि० अणंतगु० । चदुरिंदि० अणंतगु० । सव्वतिव्वाणुभागं कम्मइ० । तेजा. अणंतगु० । आहार० अणंतगु० । वेवि० अणंतगु० । ओरालि. अणंतगु ० । सव्वतिव्वाणुभागं समचदु० । हुंड. अणंतगु० । जग्गोद० अणंतगु० । सादि० अणंतगु० । खुज० अणंतगु० । वामण० अणंतगु० । सव्वतिव्वाणुभागं आहारअंगो० । वेउवि. अणंतगु० । ओरालि अंगो० अणंतगु० । संघडणं संठाणभंगो। सव्वतिन्वाणुभागं पसत्थवण्ण०४ । अप्पसत्थ०४ अणंतगुणही०। यथा गदी तथा आणुपु० । [ सव्वतिव्वाणु० अगुरु० । उस्सास. अणंतगुणही० । परघाद० अणंतगुणही० । उप० अणंतगुणही० । ] एत्तो सव्वयुगलाणं सव्वतिव्वाणि पसत्याणि । अप्पसत्याणि पडिपक्वाणि अणंतगुणही । ४२३. सव्वतिव्वाणुभागं विरियंत. । हेहा दाणंतरी. अणंतगु० । ४२४. णिरएसु यत्तियाओं पगदीओ अत्थि तत्तियाओ मूलोघो। एवं सत्तसु हीन है । इससे नरकगतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे तिर्यश्चगतिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। पञ्चन्द्रियजातिका अनुभाग सबसे तीव्र है। इससे एकेन्द्रियजातिका अनुभाग रणा होन है। इससे द्वीन्द्रियजातिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे त्रीन्द्रिय जातिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे चतुरिन्द्रियजातिका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। कार्मणशरीर सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे तैजसशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे आहारकशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे वैक्रियिकशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे औदारिकशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । समचतुरस्रसंस्थान सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे हुण्डकसंस्थानका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे न्यग्रोधपरिमण्डल संस्थानका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे स्वातिसंस्थानका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे कुब्जकसंस्थानका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे वामनसंस्थानका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । आहारकआङ्गोपाङ्ग सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे वैक्रियिकशरीर आङ्गोपाङ्गका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे औदारिक आङ्गोपाङ्गका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। छह संहननोंका अल्पबहुत्व छह संस्थानोंके समान है। प्रशस्त वर्णचतुष्क सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे अप्रशस्त वर्णचतुष्कका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। चार आनुपूर्वियोंके अनुभागका अल्पबहुत्व चार गतियोंके समान है। अगुरुलघु सबसे तीव्र अनुभागवाला है । इससे उच्छ्वासका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। इससे परघातका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । इससे उपघातका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है । यहाँ सब युगलोंमें प्रशस्त प्रकृतियोंका अनुभाग सबसे तीव्र है। इससे अप्रशस्त प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका अनुभाग अनन्तगुणा हीन है। ४२३. वीर्यान्तराय सबसे तीव्र अनुभागवाला है। इससे पूर्व दानान्तरायतक क्रमसे प्रत्येकका अनुभाग अनन्तगुणा हीन,अनन्तगुणा हीन है। ४२४. नारकियोंमें जितनी प्रकृतियाँ हैं, उनका अल्पबहुत्व मूलोधके समान है। इसी प्रकार १. ता० प्रती० पगदि इति पाठः। २. ता. प्रती हेटाहु दंडाणं ( दाणं ) तरा, श्रा० प्रती हेठा दाणंतरा इति पाठः। ३. श्रा० प्रती एत्तियाओ इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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