SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 200
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ फोसणपरूषणा १९१ ३८३. एइंदिएसु पंचणा०-णवदंस०-मिच्छ०-सोलसक०-णवणोक०-तिरिक्ख.. ओरा०-अंगों'०-अप्पसत्य०४-तिरिक्खाणु०-उप०-आदा०-णीचा०-पंचंत. ज. लो. संखें, अज० सव्वलो० । दोवेदणीय-तिरिक्खाउ०-मणुस-पंचजा-ओरा-तेजा०क०--छस्संठा०---छस्संघ०--पसत्थ०४-मणुसाणु०--अगु०३-दोविहा०-तसव्यावरादिदसयुग०- [ णिमि०-] उच्चा० ज० अज० सव्वलो० । मणुसाउ० तिरिक्खोघं । उज्जो० ज० सत्तचोद०, अज० सव्वलो०।। ३८४. बादरपज्जत्तापज्जत्त० पंचणा-णवदंस-मिच्छ०-सोलसक०-सत्तणोकतिरिक्ख०-अप्पसत्य०४-तिरिक्वाणु०-उप०-णीचा०-पंचंत० ज० लो० संखें, अज. सव्वलो० । सादासाद०--एइंदि०-ओरा०-तेजा--क०--हुंड०--पसत्थ०४-अगु०३बन्ध, और स्त्रीवेद आदिका दोनों प्रकारका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनकी अपेक्षा कुछ कम पाठ बटे चौदह राजूप्रमाण स्पर्शन कहा है । तथा एकेन्द्रियोंमें मारणास्तिक समुद्घात करते समय पाँच ज्ञानावरणादिका अजघन्य अनुभागबन्ध और सातावेदनीय बादिका दोनों प्रकारका अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनकी अपेक्षा कुछ कम पाठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूपमाण स्पर्शन कहा है। शेष कथन स्पष्ट ही है। ३८३. एकेन्द्रियोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, तिर्यश्चगति, औदारिक प्राङ्गोपाङ्ग, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तियञ्चगत्यानुपूर्वी, उपघात, पातप, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भाग प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । दो वेदनीय, तिर्यश्चायु, मनुष्यगति, पाँच जाति, औदारिकशरीर, तेजसशरीर, कार्मणशरीर, छह संस्थान, छह संहनन, प्रशस्त वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु. त्रिक, दो विहायोगति, त्रसस्थावर आदि दस युगल, निर्माण और उच्चगोत्रके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मनुष्यायुका भङ्ग सामान्य तियश्चोंके समान है। उद्योतके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोक प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। विशेषार्थ- एकेन्द्रियों में पाँच ज्ञानावरणादिका जघन्य अनुभागबन्ध बादर एकेन्द्रिय जीव सर्वविशुद्ध परिणामोंसे करते हैं, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके संख्यातवें भागप्रमाण कहा है । एकेन्द्रिय जीव सब लोकमें पाये जाते हैं, इसलिए इनके अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका सब लोक प्रमाण स्पर्शन कहा है। दो वेदनीय आदिका जघन्य और अजघन्य अनुभागबन्ध सबके होता है, इसलिए इनके जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सब लोक प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है। ____३८४. बादर पर्याप्त और अपर्याप्त एकेन्द्रियोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, सात नोकषाय, तिर्यश्चगति, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, तिर्यश्वगत्यानुपूर्वी, उपघात, नीच. गोत्र और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने लोकके संख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्ड. १. श्रा० प्रतौ तिरिक्ख० श्रोलि• ओरा अंगो० इति पाठः। २. ता०पा प्रत्योः उज्जो जस. ब.इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy