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________________ १७२ महाधे भागबंधाहियारे इसलिए स्त्रीवेद आदिके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। जो सर्वत्र एकेन्द्रियोंमें भी उत्पन्न होते हैं, उनके भी हास्य और रतिका बन्ध सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण और सब लोकप्रमाण कहा है। जो एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हैं, उनके दो आयु और समचतुरस्त्र संस्थान आदि प्रकृतियोंका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। जो नारकियों में मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हैं, उनके भी नरकगतिद्विकका दोनों प्रकार का अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट और अनुत्कृट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह राजूप्रमाण कहा है। यद्यपि स्त्रियाँ छठे नरक तक ही जाती हैं, ऐसा आगमवचन है, पर यह नियम योनि-कुचवाली स्त्रियोंके लिए ही है। जिनके स्त्रीवेदका उदय है और जो योनि-कुचवाली नहीं हैं अर्थात् जो स्त्रीवेदके उदयके साथ द्रव्यसे पुरुष हैं, उनका गमन सातवें नरक तक सम्भव है, यह इस स्पर्शन नियमसे सिद्ध होता है। इतना ही नहीं, इससे द्रव्यवेद और भाववेदका जो वैषम्य माना जाता है, उसकी भी सिद्धि होती है । जो त्रसनालीके भीतर ऊपर एकेन्द्रियोंमें समुद्घात करते हैं, उनके भी तिर्यगति आदिका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है; इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ वटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। तथा इनके अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंके स्पर्शनका स्पष्टीकरण पाँच ज्ञानावरण आदिके समान कर लेना चाहिए। जो तिर्यच और मनुष्य देवों में मारणान्तिक समुद्घात कर रहे हैं, उनके भी देवगतिद्विकका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। जो नीचे छह और ऊपर छह, इस प्रकार कुछ कम बारह राजूप्रमाण क्षेत्रका मारणान्तिक समुद्घात के समय स्पर्शन कर रहे हैं, उनके भी पञ्च ेन्द्रियजाति और त्रसप्रकृतिका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। जो एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, उनके औदारिकशरीरका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध नहीं होता, इसलिए इसके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। परन्तु एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घात करते समय इसका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इसके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन पाँच ज्ञानावरणादिके समान कहा है। जो देबों और नारकियों में मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, उन मनुष्य और तिर्यों के वैक्रियिकद्विकका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध होता है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। जो एकेन्द्रियों में त्रसनालीके भीतर समुद्घात करते हैं, उनके उद्योत और यशस्कीर्तिका अनुत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके अनुत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। मात्र उद्योतका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध तत्प्रायोग्य तिव आदि तीन गतिके जीव करते हैं, इसलिए इसके उत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह राजुप्रमाण कहा है। जो नारकियों में मारणान्तिक समुद्घात करते हैं, उनके भी अप्रशस्त विहायोगति और दुःस्वरका उत्कृष्ट अनुभागबन्ध सम्भव है, इसलिए इनके उत्कृष्ट अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। तथा इनके अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन पश्चन्द्रियजातिके समान घटित कर लेना चाहिए । जो नीचे छह और ऊपर सात इस प्रकार कुछ कम तेरह राजूका मारणान्तिक समुद्घातके समय स्पर्शन करते हैं, उनके भी बादर प्रकृति का बन्ध होता है, इसलिए इसके अनुत्कृष्ट अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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