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________________ परत्थाणटिदिअाप्पाबहुगपरूवणा विसे । कांधसंज० जट्टि विसे० । यहि विसे । पुरिस० ज हि संखेजः । यहि विसे । मणुसायु. जहि० संखेज०। यहिविसे० । देवायु० जहि. असंखेज । यहि विसे । हस्स-रदि-भय-दुगु नहि संखेंज । यहि विसे । देवगदि--चदुसरीर० ज०हि० संखेज । यहि० विसे । णिदा--पचलाणं जाहि० संखेज्ज० । यहि विसे० । अरदि-सोग-अजस० जहि संखेंज । यहि विसे । असादा० जहि. विसे० । यहि. विसे० । पच्चक्खाणा०४ ज हि संखेज। यहि विसे । अपच्चक्रवाणा०४ जटि संखेजः । यहि विसे । मणुसग०ओरालि जट्टि० संखेज । यहि विसे। एस भंगो ओघिदंस०--सम्मादि. खइग०-उवसम०। .६८२. मणपज्जव० सव्वत्थोवा लोभसंज जहि । यहि विसे । पंचणाचदुदंस-पंचंत० ज०टि संखेज०। यहि विसे । जस०-उच्चा० ज०हि० संखेज्ज। यहि विसे । सादा. ज.हि. विसे । यहि विसे । मायसंज. जाहि० संखेन्ज । यहि. विसे । माणसंज० ज०हि० विसे । यट्टि विसे । कोधसंज. अधिक है। इससे क्रोधसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे हास्य, रति, भय और जुगुप्साका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे देवगति और चार शरीरका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थिति'बन्ध विशेष अधिक है। इससे निद्रा और प्रचलाका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति, शोक और अयश-कीर्तिका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असातावेदनीय का जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे प्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अप्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मनुष्यगति और औदारिक शरीरका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। यही भङ्ग अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। ६८२. मनःपर्ययज्ञानी जीवोंमें लोभसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे सातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मायासंज्वलनका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मानसंज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे क्रोध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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