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________________ २७९ हिदिअप्पाबहुगपरूवणा तिरिक्खग० उक्क हि विसे०। यहि विसे । सेसाणं अपज्जत्तभंगो । वेउव्वियका. देवोघं । एवं वेवियमि० । ६०६. आहार-आहारमि० सव्वत्थोवा पंचखोक० उ०हि० । यहि विसे । चदुसंज० उ०हि. विसे । यहि विसे० । सव्वत्थोवा थिर-सुभ-जसगि० उ०हि०। यहि. विसे० । तप्पडिपक्खाणं उ.हि. विसे । यहि. विसे० । ६०७. कम्मइग० पंचणा-णवदंसणा०--वएण०४-अगु०४-आदाउज्जो-तसथावरादियुगल-णिमि-तित्थय०--पंचंत. सव्वत्थोवा उहि । यहि. विसे । सव्वत्थोवा चदरिं० उ.हि० । यहि. विसे० । तीइंदि० उ०हि० विसे० । यहि विसे । बेइंदि० उ०ट्टि विसे० । गहि. विसे । एइंदि०--पंचिंदि० उ.हि. विसे । यहि विसे० । सेसाणं ओघं । णवरि गदी ओरालियमिस्सभंगो। ६०८. इत्थिवेदे देवोघं । णवरि आहार० उ.हि. थोवा । यहि विसे । चदुएणं सरीराणं उ०हि० संखेंजगु० । यहि विसे० । सव्वत्थोवा आहार० अंगो. उ.हि । यहि विसे० । ओरालि०अंगो० उ०ट्ठि• संखेज । यहि विसे । है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग अपर्याप्तकोंके समान है। वैक्रियिककाययोगी जीवोंका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंके जानना चाहिए ! ६०६. आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में पाँच नोकषायोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे चोर सज्वलनोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। स्थिर, शुभ और यश-कीर्तिका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध सबसे स्तोक है । इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे इनकी प्रतिपक्ष प्रकृतियोंका उत्कृष्ट स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६०७. कार्मणकाययोगी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, वर्णचतुष्क, अगुरुलधुचतुष्क, आतप, उद्योत, त्रस और स्थावर आदि चार युगल, निर्माण, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तराय इनका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। चतुरिन्द्रिय जातिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे त्रीन्द्रिय जातिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे द्वीन्द्रिय जातिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे एकेन्द्रिय और पञ्चेन्द्रिय जातिका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। शेष प्रकतियोंका भङ्ग पोषके समान है। इतनी विशेषता है कि गतियोंका भङ्ग औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंके समान है। ६०८. स्त्रीवेदो जीवोंमें सामान्य देवोंके समान भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि आहारक शरीरका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे चार शरीरोंका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। आहारक श्राङ्गोपाङ्गका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे औदारिक प्राङ्गोपाङ्गका उत्कृष्ट स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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