SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जहण्णसत्थाणबंधसण्णियासपरूवणा ११९ २३६. णिदाणिदाए जहएणहिदिबंधतो पचलापचला थीणगिद्धी णिद्दा पचला य णिय बंध० । तं तु जहण्णा वा अजहरणा वा । जहणणादो अजहण्णा समजुत्तरमादि कादृण याव पलिदोवमस्स असंखेन्जदिभागब्भहियं बंधदि । चदुदंसणा० णि० बं० णि' अजह असंखेज्जगुणब्भहियं बंधदि । एवं णिहणिद्दभंगो चदुदंसणा। चक्खुदं० जह• हि बं० तिरिणदंसणा० णि बं० णि जहएणा । एवमेक्कमेकस्स । तं तु जहण्णा० । ___ २३७. साद० जहि०० असाद. अबंधगो । असाद० जह• हि०० साद अबंधगो। २३८. मिच्छत्त० जहहिबं. बारसक०-हस्स-रदि-भय-दुगु जि. बं० । तं तु जह० अजहण्णा वा । जह० अजह समजुत्तरमादि कादूण याव पलिदोवमस्स असंखेंजदिभागभहियं बंधदि । चसंज-पुरिस० णि. बं. णि अज. असंखेंजगुणभहियं बं० । एवं मिच्छत्तभंगो वारसक०-हस्स-रदि-भय-दुगु । २३६. कोधसंजल• जह०ठि०० तिएिणसंजलणं णि. बं. संखेज्जगुण २३६. निद्रानिद्राकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, निद्रा और प्रचला इनका नियमसे बन्धक होता है। किन्तु वह जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है। चार दर्शनावरणका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य असंख्यात गुणा अधिक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार निद्रानिद्राके समान चार दर्शनावरणका सन्निकर्ष जानना चाहिए । चक्षुदर्शनावरणकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव तीन दर्शनावरणका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे जघन्य स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार इनका परस्पर सन्निकर्ष होता है। किन्तु तब वह जघन्य स्थितिका बन्धक होता है। २३७. साता प्रकृतिकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव असाता प्रकृतिका प्रबन्धक होता है । असाता प्रकृतिकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव साता प्रकृतिका प्रवन्धक होता है। २३८. मिथ्यात्वकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव बारह कषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्सा इनका नियमसे बन्धक होता है। किन्तु वह जघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है और अजघन्य स्थितिका भी बन्धक होता है। यदि अजघन्य स्थितिका बन्धक होता है तो जघन्यकी अपेक्षा अजघन्य एक समय अधिकसे लेकर पल्यका असंख्यातवों भाग अधिक तक स्थितिका बन्धक होता है। चार संज्वलन और पुरुषवेदका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य असंख्यात गुणा अधिक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार मिथ्यात्वके समान बारह कषाय, हास्य, रति, भय और जुगुप्साकी मुख्यतासे सन्निकर्ष जानना चाहिए। २३९. क्रोध संज्वलनकी जघन्य स्थितिका बन्धक जीव तीन संज्वलनका नियमसे बन्धक होता है जो नियमसे अजघन्य संख्यातगुणा अधिक स्थितका बन्धक होता है। मान १ मूलप्रतौ णि. असंज. असांखे० इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy