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________________ उवसम० । २०० महाबंधे द्विदिबंधाहियारे वचि०-इत्थि०-पुरिस-चक्खु-सरिण। ओघभंगो कायजोगि-कोधादि०४-मदि०सुद०-असंज-अचक्खुदं०-भवसि०-अब्भवसि-मिच्छादि-आहारग ति । एवं चेव ओरालि -ओरालियमि०-णवुस-किरण-णील-काउ० । णवरि तिरिक्खोघो कादव्यो। ३६६. वेउव्वियकायजो सत्तएणं क• तिएिणवडि-हाणि-अवहि अहतेरह । कम्मइ० खेत्तं । वरि बेवडि-हाणि केव० खेत्तं फोसिदं ? लोग० असं० एक्कारहचो० । विभंगे अहचो०भा० सव्वलोगो। ३६७. आभि-सुद०-अोधि० सत्तएणं क० तिएिणवडि-हाणि-अवट्टि आयु० दो वि पदा अडचो० । सेसं खेत्तं । एवं अोधिदं०-सम्मादि-खइग-वेदगस० ३६८. तेउ० देवोघं । पम्मले० सब्वे भंगा अट्टचो । सुकाए छच्चोइस० । आयु कर्मके दोनों ही पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्श किया है। इसी प्रकार पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, चक्षुदर्शनी और संशी जीवोंके जानना चाहिए । काययोगी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताशानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और अहारक जीवों में स्पर्शन ओघके समान है। तथा इसी प्रकार औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, नपुंसकवेदी, कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोतलेश्यावाले जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इन मार्गणाओं में सामान्य तिर्यञ्चोंके समान स्पर्शन जानना चाहिए। ३९६. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें सात कौकी तीन वृद्धियों, तीन हानियों और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। कार्मणकाययोगी जीवोंमें सब पदोंका बन्ध करनेवाले जीवों का स्पर्शन क्षेत्र के समान है। इतनी विशेषता है कि दो वृद्धियों और दो हानियोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्श किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग व कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्श किया है। विभङ्गहानी जीवों में अपने पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठ वटे चौदह राजू', कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्श किया है। ३९७. आभिनिबोधिकहानी, श्रुतशानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सात कर्मोंकी तीन वृद्धियों,तीन हानियों और अवस्थित पदका बन्ध करनेवाले जीवोंने तथा आयुकर्मके दोनों हो पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्श किया है। शेष पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। ३९८. पीतलेश्यावाले जीवोंने अपने सब पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन सामान्य देवोंके समान है। पद्मलेश्यावाले जीवोंमें सब पदोका बन्ध करनेवाले जीवोंने कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्श किया है। शुक्ल लेश्यावाले जीवोंमें अपने सब पदोंका बन्ध करनेवाले जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्श किया है। १. मूलप्रतौ अट्ठतेरह बा० सम्व- इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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