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________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो १७१ सत्तएणं क. भुज०-अप्पद०-अवहि आयु० दो पदा० पंचिंदियतिरिक्खपज्जत्तभंगो । सत्तएणं क. अवत्त० ओघं । सव्वविगलिंदिय० पचिंदियतिरिक्खभंगो। पंचिंदिय-तस० पंचिंदियतिरिक्रखपज्जत्तभंगो । णवरि सत्तएणं क० अवत्त ओघं । ३३१. बादरपुढवि०-आउ-तेउ०-वाउ-बादरवण पत्तेयपज्जत्ता० विगलिंदियअपज्जत्तभंगो । णवरि तेउका. आयु० दो वि पदा जह० एग०, उक्क० चउवीसं मुहु। ३३२. पंचमण-पंचवचि०-वेउब्वियका-इत्थिवे०-पुरिस-विभंग०-चक्खुदं०सणिण त्ति सगपदा० मणुसिभंगो । उचियमिस्स० सव्वे भंगे जह० एग०, उक्क० बारसमु० । आहार-आहारमि० सव्वे भंगे जह० एय०, उक्क० वासपुधत्तं ।। ३३३. अवगदवे० सत्तएणं क० भुज-अवत्त० जह० एग०, उक्क० वासपुधत्तं। अप्प०-अवहि० जह० एग०, उक्क० छम्मासं । एवं सुहमसं । सत्तएणं क० अवत्त० पत्थि अंतरं । भुजगार, अल्पतर और अवस्थित पदोंका तथा आयुकर्मके दो पदोंका अन्तरकाल पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च पर्याप्तकोंके समान है। सात कौके अवक्तव्य पदका अन्तरकाल ओघके समान है। सब विकलेन्द्रियों में सब पदोंका अन्तरकाल पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। तथा पञ्चेन्द्रिय और प्रसोंमें सब पदोंका अन्तरकाल पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च पर्याप्तकोंके समान है। इतनो विशेषता है कि सात कौके प्रवक्तव्य पदका अन्तरकाल ओघके समान है। ३३१. बादर पृथिवीकायिक पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त, बादर वायुकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंमें सब पदोंका अन्तरकाल विकलेन्द्रिय अपर्याप्तकोंके समान है। इतनी विशेषता है कि अग्निकायिक पर्याप्त जीवोंमें आयुकर्मके दो पदोंका जघन्य अन्तरकाल एक समय और उत्कृष्ट अन्तरकाल चौबीस मुहूर्त है। ३३२. पाँचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, वैक्रियिक काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभङ्गशानी, चक्षुदर्शनी और संधी जीवों में अपने-अपने पदोंका अन्तरकाल मनुष्यिनियोंके समान है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवों में सब पदोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवों में सब पदोंका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। ३३३. अपगतवेदमें सात कमौके भुजगार और प्रवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। अल्पतर और अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर छह महीनो है। इसी प्रकार सूक्ष्मसाम्पराय संयत जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके सात कमौके प्रवक्तव्य पदका अन्तर नहीं होता। विशेषार्थ-भुजगार और अवतन्य पद उपशमश्रेणिमें होते हैं और उपशमश्रेणिका उत्कृष्ट अन्तरकाल वर्षपृथक्त्व है। इसीसे यहां अपगतवेदी जीवोंके सात कौके भुजगार और अवक्तव्य पदोंका उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व कहा है। सूक्ष्मसाम्पराय संयत जीवोंके भुजगार पदका यह अन्तर मोहनीयके विना छह कर्मोंका प्राप्त होता है। शेष कथन सुगम है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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