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________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो अप्प०-अवहि मूलोघं । अवत्त० णत्थि अंतरं। आयु. अप्पद०-अवत्त० जह० अंत्तो०, उक्क० बावीसं वस्ससहस्साणि सादि० । ओरालि. सत्तएणं क. मण०भंगो । आयु० अप्पद०-अवत्त० जह• अंतो०, उक्क० सत्तवस्ससहस्साणि सादिरे । ओरालियमि० सत्तएणं कम्माणं भुज०-अप्पद० ओघं । अवहि. जह० एग०, उक्क० तिषिण सम० । आयु० अप० भंगो। वेउवियमि०-सम्मामि० सत्तएणं क. णिरयभंगो। कम्मइ०-अण्णाहा० सत्तएणं क. भुज०-अप्पद० णत्थि अंतरं । अवट्टि जहएणु० एग । २८६. अवगद० सत्तएणं क. भुज-अप्प० जहएणु० अंतो० । अवहि० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० णत्थि अंतरं । २६०. कोधादि०४ सत्तएणं क. भुज०-अप्प० अोघं । अवहि० जह० एग०, उक्क. चत्तारि सम । आयु. मणजोगिभंगो। रणवरि लोभे मोह० अवत्त. णत्यि अंतरं। पदोंका अन्तर मूलोघके समान है। अवक्तव्य पदका अन्तर नहीं है। आयुकर्मके अल्पतर और प्रवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर साधिक बाईस हजार वर्ष है। औदारिक काययोगी जीवोंमें सात कमौके पदोंका अन्तर मनोयोगियोंके समान है। आयुकर्मके अल्पतर और अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट अन्तर साधिक सात हजार वर्ष है। औदारिकमिश्रकाययोगी जीवों में सात कर्मोंके भुजगार और अल्पतर पदका अन्तर ओघके समान है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर तीन समय है । आयुकर्मका भङ्ग अपर्याप्तकोंके समान है। वैक्रियिकमिश्रकाययोगी और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवों में सात कौके सम्भव पदोंका अन्तर नारकियोंके समान है। कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सात कमौके भुजगार और अल्पतर पदका अन्तर नहीं है । अवस्थित पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर एक समय है। २८९. अपगतवेदी जीवोंमें सात कमौके भुजगार और अल्पतर बन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थितबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । प्रवक्तव्य बन्धको अन्तरकाल नहीं है। विशेषार्थ-अपगतवेदमें अवस्थितबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त होनेसे यहां भुजगार और अल्पतरबन्धका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त कहा है। किन्तु यहां भुजगार और अल्पतरबन्धका काल एक समय होनेसे अवस्थित बन्धका जघन्य अन्तर एक समय कहा है। तथा मोहनीयके बन्धकी अपेक्षा सूक्ष्मसाम्पराय और उपशान्तमोहसे अन्तरित होकर और आयुके बिना शेष छह कर्मोंकी अपेक्षा उपशान्तमोहसे अन्तरित होकर अपगतवेदमें सात कौका अवस्थितबन्ध भी होता है, इसलिए यहां सात कर्मोंके अवस्थितबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त कहा है। इन कर्मोंका अवक्तव्य बन्ध उपशमश्रेणिसे उतरते समय एक बार होता है, इसलिये यहां श्रवक्तव्य बन्धके अन्तरका निषेध किया है। २९०. क्रोधादि चार कषायवाले जीवों में सात कर्मोंके भुजगार और अल्पतरबन्धका अन्तर श्रोधके समान है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है। आयुकर्मका भङ्ग मनोयोगियोंके समान है। इतनी विशेषता है कि लोभक. षायमें मोहनीय कर्मके श्रवक्तव्यबन्धका अन्तर काल नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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