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________________ उक्कस्सअंतरपरूषणा पज्जत्ता पंचिंदियतिरिक्वभंगो। णवरि तेउ० आयु० अणु० जह० एग०, उक्क० चउवीसं मुहुत्तं । ___ २१०. पंचमण-पंचवचि०-वेउव्वियका०-इत्थि०-पुरिस-विभंग-चक्खुदं०सएिण. मणुसभंगो। वेउव्वियमि० सत्तएणं क. उक्क० ओघं । अणु० जह. एग०, उक्क० बारस मुहुत्त । आहार-आहारमि० अहरणं कम्माणं उक्क० अोघो । अणु० जह• एग०, उक्क० वासपुधत्तं । २११. अवगद-सुहुमसं० सत्तएणं क० छएणं क० उक० जह• एग, उक्क ० वासपुधत्तं । अणु० जह• एग०, उक्क छम्मासं । २१२. आभि०-सुद-प्रोधि० सत्तएणं क० अोघं । आयु० उक्क० अोघं । अणु० जह• एग०, उक्क० मासपुधत्तं । एवं अोधिदं०-मुक्कले०-सम्मादि०-खइगस०पर्याप्त जीवोंका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है। इतनी विशेषता है कि अग्निकायिक पर्याप्त जीवों में आयुकर्मकी अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चौबीस मुहूर्त है। २१०. पांचों मनोयोगी, पांचों वचनयोगी, वैक्रियिक काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभङ्गशानी, चक्षुदर्शनी और संझी जीवोंका भङ्ग मनुष्योंके समान है। वैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवों में सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका भङ्ग श्रोधके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त है। श्राहारककाययोगी और आहारक मिश्रकाययोगी जीवोंमें आठों कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका भङ्ग ओघके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्ष पृथक्त्व है। विशेषार्थ-लोकमें वैक्रियिक मिश्रकाययोग कमसे कम एक समयतक और अधिकसे अधिक बारह मुहूर्ततक नहीं होता। इसी प्रकार आहारक काययोग और आहारक मिश्रकाययोगका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण है। इसीसे वैक्रियिक मिश्रकाययोगमें सात कमौके अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर बारह मुहूर्त कहा है। तथा आहारक काययोग और आहारक मिश्रकाययोगमें आठों कर्मों के अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व प्रमाण कहा है। शेष कथन सुगम है। २११. अपगतवेदी और सूक्ष्म साम्परायसंयत जीवोंमें क्रमसे सात और छह कर्मोकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर वर्षपृथक्त्व है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है विशेषार्थ-उक्त मार्गणाओं में उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर उपशम श्रेणिके अन्तरकी और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तर क्षपकश्रेणिके अन्तरकी अपेक्षासे कहा है। २१२. आमिनिबोधिकहानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में सात कौका भङ्ग श्रोधके समान है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका भङ्ग ओधके समान है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और १.ध० पु०.७,पृ. ४८५। २. ध पुक,पृ. ४८५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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