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________________ ९८ महाबंधे पणवण्णं पलिदो० सादिरे । मणुसग० ओरालिय० ओरालिय० अंगो० वारिसभसंघ० मणुसाणु० जह० एग०, उक० तिण्णि पलि० देसू० । आहारदुगं जह० अंतो०, उक्क० पलिदोवमसदपु०। पुरिस०-पंचणा० चदुदंसणा० चदुसंज० पंचंत० णस्थि अंत० । थीणगिद्धि०३ मिच्छ० अणंताणु०४ अट्ठक० । इत्थिवे. ओघ । णिद्धापयला ओघं । सादासा० सत्तणो० पंचिंदि० तेजाक० समचदु० वण्ण०४ अगु०४ पसत्थ० तस०४ थिरादिदोणियुग०-सुभग-सुस्सर-आदे० णिमि० तित्थय. उच्चा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । णपुंस० पंचसंठा० पंचसंघ० अप्पसत्थ० भग-दुस्सर० अणादे०णीचा. जह० एग०, उक्क. वेछाव ट्ठि-सादि० तिण्णि पलिदो०देसू० । णिरयायु० इत्थिवेदभंगो । दोआयु० जह० अंतो०, उक्क०सागरोपमसदपु० । देवायु० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि० । णिरयगदि-चदुजादि-णिरयाणुपु०-आदावुज्जो०-थावरादि०४ जह० एगस० उक्क० तेवट्ठिसाग० सदं० । एवं तिरिक्खगदिदुगं । मणुसगदिपंचगं जह० एग०, उक्क० तिण्णि पलिदो० सादि० । देवगदि०४ जह० एग०, उक० तेत्तीसं सा० सादि० । आहारदुर्ग जह० अंतो०, उक्क० सागरोपमसदपु० । णपुंस०-पंचणा० छदंस० चदुसंज० भयदुगु. तेजाकम्म० वण्ण०४ अगुरु० उप० णिमि० पंचंत० णत्थि अंत० । थीणगिद्धि०३ मिच्छ० अणं जघन्य एक समय, उत्कृष्ट कुछ अधिक ५५ पल्य अन्तर है। मनुष्यगति, औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, वन-वृषभसंहनन, मनुष्यानुपूर्वी का जघन्य एक समय उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। आहारकद्विकका जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पल्यशत पृथक्त्व प्रमाण अन्तर है। . पुरुषवेदमें-५ ज्ञानावरण, ४ दर्शनावरण, ४ संज्ज्वलन, ५ अन्तरायोंका अन्तर नहीं है । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुवन्धी ४, ८ कषाय, त्रीवेदका ओघके समान जानना चाहिए । निद्रा, प्रचलाका भी ओघके समान है। साता-असाता वेदनीय, ७ नोकपाय, पंचेन्द्रिय जाति, तैजस, कार्मण शरीर, समचतुरस्र संस्थान, वर्ण ४, अगुहलघु ४, प्रशस्त विहायोगति, त्रस ४, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थकर, उच्च गोत्रका जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्त मुहूर्त है । नपुंसकवेद, ५ संस्थान, ५ संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय और नीच गोत्रका जघन्य एक समय, उत्कृष्ट कुछ कम तीन पल्य अधिक दो छयासठ सागर प्रमाण अन्तर है। नरकायुका स्त्रीवेदके समान जानना। मनुष्य, तियंचआयुका जघन्य अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट सागरोपम शत-पृथक्त्व अन्तर है । देवायुका जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट साधिक तेतीस सागर है। नरकगति, ४ जाति, नरकानुपूर्वी, आताप, उद्योत, स्थावरादि ४ का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट ६३ सागरोपम अन्तर है। तियंचगति, तियंचगत्यानुपूर्वी में इसी प्रकार जानना चाहिए। मनुष्यगतिपंचकका जघन्य एक समय, उत्कृष्ट साधिक तीन पल्य है । देवगति ४ का जघन्य एक समय, उत्कृष्ट साधिक तेनीस सागर है। आहारकद्विकका जघन्य अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट सागर शत-पृथक्त्व अन्तर है। ___ नपुंसकवेदमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस, कार्माण, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और ५ अन्तरायोंमें अन्तर नहीं है । स्त्यानगृद्धित्रिक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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