SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ स्तर : अंत में नाम - विभक्ति और क्रिया-प्रत्ययों में दूरगामी परिवर्तन | प्राकृत भाषा के जो शब्द और रूप संस्कृत के बिलकुल समान हैं उन्हें तत्सम कहा जाता है और जिनमें ध्वनि-परिवर्तन हुआ है उन्हें तद्भव कहा जाता है । अन्य शब्द जिनकी प्रायः संस्कृत के साथ तुलना नहीं की जा सकती और जिनका उद्गम कोई अन्य भाषाओं से हुआ है उन्हें देश्य शब्द कहा जाता है । ये तीनों प्रकार के शब्द इस प्रकार हैं :कुमार, अभय, देव, बद्ध, रमणी, आरूढ, अहं. तत्सम : तद्भव : देश्य : वयण ( वदन), दाहिण (दक्षिण), भज्जा ( भार्या ), जाम ( याम), तस्स ( तस्य ), घेत्तूण ( गृहीत्वा ). लडह ( रम्य ), मरट्ट (गर्व ), कोट्ट (दुर्ग), बिट्टी (पुत्री), हल्लफल्ल (त्वरा ), डाल (शाखा), गोस ( प्रभात ), चंग ( रम्य ), चड ( आरुह्), दिक्करिया ( पुत्री ). Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy