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________________ ४५. ११. १० ] कहकोसु [ ४५३ वेढिउ जणसएहिँ निदिज्जइ बधु धरिउ किं कारण निज्जइ । १० ता विप्पेणाउच्छिउ तलवरु तेण वि कहिउ असेसु वि वइयरु । घत्ता-नायसम्म जूयारिप्रण एण दुअट्ठकोडिदव्वेसरु । जित्तउ सहसकहावणहँ निवमंतिउ वरसेणु वणीसरु ।।९॥ १० मग्गिउ देइ न जा ता मारिउ रूसिवि छुरियपहारहिँ दारिउ। ... तेण एहु अम्हहँ पुहईसें मारहुँ अप्पिउ पिसुणु सरोसें। प्रायन्नेवि कुमारिण पुट्ठउ ताय एउ मारिह फलु दिट्ठउ । मझु वि मुणिणा दुक्कियनिग्गहु जीववहे व दिन्नु अवग्गहु । चत तम्मि कियजीवविराहणि एहावत्थ हउँ मि पावमि जणि । ५ ता तेणुत्तु पमाणहो गच्छउ । छड्डहि अवर एउ वउ अच्छउ । . सुप्र वासेण वि भारहि भासिउ जीवदयाहलु सुधु पसंसिउ । एम भणेवि जाम किर गच्छइ ता अग्गा अवरु वि नरु पेच्छइ । बद्धउ पुवक में निजंतउ वारिवि विरसतूरु वज्जंतउ । पुच्छिउ कवणु दोसु कि उ पाएं ता तहिँ कहिउ निरिक्कनिवाएं । १० - घत्ता–पासगामि वेसायडिय नामें वणिवई य पुवइया । अज्जु समाया एत्थ पुरे विक्कहुँ धन्नु धन्नविक्कइया ।।१०।। मग्गिउ मिलिय सट्टि पडिवन्नउ तम्मि मविज्जमाणि आवेप्पिणु अक्खिउ वंचत्णथु वणिउत्तें सप्पखधु वणि एहु पहाणउ भणिउ एण जाणिवि अवरत्तउ जग्गहुँ एहु एत्थु निसि धीरहँ एयहँ मज्झ एण जाणेप्पिणु प्राणिउ एह एण इंधणभरु एहु वि एउ मडउ रक्खंतउ एहु चयारि वि ए मारिवि अवि १ भिक्खंता। तेहिं धन्नु रटुउडहो दिन्नउ । गाहक्कहो तो एण मिलेप्पिणु । चित्तालिहिउ कहाणउ धुत्तें । एह एत्थु हक्कारिउ जाणउ । उट्ठावेसमि पसरि निरुत्तउ । एयहँ चउहुँ समप्पिउ वीरहँ। आणिउ मिंढउ एहु हरेप्पिण । एण वि एह एत्थ वइसाणरु। थिउ एक्कल्लउ निब्भयचित्तउ। थिय भक्खंता' तामुग्गउ रवि। १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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