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________________ ३६८ ] सिरिचंद विरइयउ धत्ता - गउ मरेवि भत्तारु कालें पूरियपणएँ । वियि त्थु जीवमि मुणि कत्तणएँ ॥२॥ एउ सुप्पिणु मुणिणा वृत्ती जणमणणयणानंदजणेरी सुमरहि बालभावे कीलंतइँ सुमरहि विनिवि सुंदर देहइँ इणि भणिउ प्रत्थि सुमरमि मुणि इयहिँ वे विप्रणुरत्तइँ नाइँ वि तरुणत्तणु पत्तइँ हिँ होंताइँ गंपि कुसुमउर निच्चाणियखडलक्कडभाडम निसुणह कुच्चवारकह सुंदरि होतउ मोरियवंस विहसणु तासु प्रोसिरि महएविहे सुंदरु सूरु वीरु विक्कतउ तासु भएण समत्थ वि संकहिँ मच्छंतो पाविकित्तणि एक्कहिँ दिणि वरधम्मु मुणीसरु धम्माहम्मो फलु निसुणेप्पिणु कुच्चवारु मेल्लेप्पिणु मंदिरु Jain Education International - घत्ता - उ सुणेवि कयावि थीसंसग्गु न किज्जइ । तेण कएण निरुत्तु तवखंडणु पाविज्जइ || ३ || घत्ता -- निवि सरीरहो भंजेवउ महिला जइ एरिसु तो जत्थ न दीसइ तहिँ तउ करमि एम पभणेपिणु ४. १ सृयसेविहे । ४ हसा तुहुँ सिवसम्महो पुत्ती । तु संबंधिणि म्हुँ केरी । उज्झायो घरे बेवि पढतइँ | म्हइँ पुव्वपयासिय नेहइँ | पुव्वनेहसंबंधु महामुणि । संलग्इँ लोहाइँ व तत्तइँ । थियइँ परोप्परु सुरयासत्तइँ । थक्कइँ चाउवन्नजणपउर । वेनि विनिव्वहंति कव्वाडिम । [ ३७. २. ११ राउ सोयनामु पाडलिउरि । सोहणमइ कयदुन्नयदूसणु । कुच्चवारु हुउ सुउ सिय से विहे । जगनिग्गयपयाउ बलवंतउ । नासहिँ वइरि न सम्मुहु ढुक्कहिँ । तो नियलील जुवरायत्तणि । तत्थायउ ससंघु परमेसरु । निव्विन्नउ तहो पय पणवेष्पिणु । हुउ मुणि जणमणनयणादिरु | छाय सलिले कयाइ नियत्तउ । तुह तउ गुरुणा वृत्तउ ॥४॥ ५ For Private & Personal Use Only महिला महु चारित्तु न नासइ । गउ गिरिसिहरहो गुरु पणवेप्पिणु । ५ १० ५ १० www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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