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________________ [ १४. ६.६ १६४ ] सिरिचंदविरइयउ घत्ता-गंपि पयासियनेह वाहिविलीणु सविणएँ। दिठ्ठ सहोयरिकंतु विहसियमुहु कयपणएँ ।।९।। १० पुणु भणिउ भणइ जं किं पि वेज्जु तं किज्जइ चितिज्जइ सकज्जु । जें सुहि सुहु होइ सरीरु रम्म जीवंतहँ होसइ धम्मकम्मु । लइ खज्जउ जंगलु वायसासु पुणु तासु करेवउ दोसनासु । दिढमणु अवगणियवाहिवाहु निसुणेवि एउ वज्जरइ वाहु । तें भणिउ जाइ जइ पलइ काउ भंजमि वउ तोवि न खामि काउ। ५ निट्ठाहु निएप्पिणु सहरिसेण भत्तारु पसंसिउ ससह तेण । पुणु जक्खिदेविवित्तंतु तासु पायडिउ भावि सुरलोयवासु । प्रायण्णिवि परियाणियविसेसु संतुट्ठ सुठ्ठ मणि वणयरेसु । कयसवजीवासही निवित्ति एत्तहे हय कालें पाणसत्ति । घत्ता-मुउ निम्मोहु धरेवि गुरुगिर चित्तै चिलायउ। देउ दिवायरु नामु पढमसग्ग संजायउ ॥१०॥ ११ कहिँ असुइ चिलायत्तणु अहम्म कहिँ देवत्तणु सुइ परमरम्म। इय जाणिवि दूरि विमुक्ककम्मु भणु केम न किज्जइ जइणधम्मु । एत्तहे काऊण परोक्खकज्जु तहिँ थाण थवेप्पिणु भाइणेज्जु । पियसोयाय विच्छायकति साहारिवि ससहोयरि रुयंति । एतेण तेण पुणु दिट्ठ देवि बोल्लाविय जमला कर करेवि । ५ कि पालियवयसुक्कियसणाहु हुउ महु बहिणीवइ तुझ नाहु । ता कहिउ रुयंतिण ताण तासु किउ मइँ सयमेव सकज्जनासु । जं कहिउ भावि वरइत्तलाहु हरिसिउ तुह वयणु सुणेवि वाहु। काऊण सव्वपलकवलचाउ गुरुपय सुमरेवि महाणुभाउ । संपन्नुत्तमदेवत्तलाहु महु पुणु वि तहट्ठिउ विरहडाहु । १० वयणेण एण जक्खिहे तणेण जाएप्पिणु विभियमाणसेण । धत्ता-सावयधम्मु समाहिगुत्तमुणिहे पणवेप्पिणु । लइउ सूरवीरेण ससा निवित्ति करेप्पिणु ॥११॥ सुंदरु संजणियजणाणुराउ उवसेणिउ नामें गुणनिहाणु इह रायगेहनयरम्मि राउ। होतउ विवक्खमाणावसाणु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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