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________________ ६. १४. ५ ] कहकोसु [ ११३ तेसु गएसु तेहिँ घग्घाविवि निल्लक्खणु पउत्तु मन्नाविवि। कत्तउ ताउ वियक्खण वड्डय लेवि मोल्लु ते देहि कवड्डय । भणइ अलक्खणु ते मइँ देसिय दीणहुँ दिन्ना ते वि हु पवसिय । कहिँ लब्भंति काइँ किर किज्जइ [सुणिवि जुगारहिँ पुणु वि भणिज्जइ ।] किं बहुवित्थरेण जिह जाणहि तिह निच्छउ जोएप्पिणु प्राणहि । १० पत्ता-कह वि हु विहिजोएण ते मेलवहुँ अलक्खणु । तरइ कयाइ न जीउ माणुसजम्मु सलक्खणु ।।१२।। ॥ जूदक्खाणं गदं ॥४॥ १३ भरहो सयरो पहु महतो तह य सणक्कुमारु नयवंतो। संती कुंथू अरु अरनामो नवनिहिनाहु सुभूमो पउमो। हरिसेणो वक्को नयसेणो बंभदत्तु अरिखेयरसेणो। एयाणं एक्केक्को दिन्नो चूलमणी देवेहिँ रवन्नो। ते देवा मणिणो तक्काया जीवा ते बारह भूराया। कहमवि पुणु एक्कक्क कयाई संघडंति नउ माणुसजाई । अहवा एवं रयणक्खाणं वत्तव्वं भुवणम्मि पहाणं । वणिो नामें सायरदत्तो चितियपत्थोवायपयत्तो। सिंघलदीवं गयउ समित्तो तत्थेक्कं माणिक्कं पत्तो। इंतहा जलजाणेण रउद्दे पडिदं तं हत्थाउ समुद्दे । पुणु तल्लाहु व दुल्लहु लोए नरभवु बहुसंजोयविनोए। घत्ता-सुविणण रज्जविलासु कव्वाडियो जहा तह ।। एक्कसि माणुसजम्मु पुणरवि पाविज्जइ कह ॥१३॥ ॥ रयणक्खाणं गदं ॥५॥ १४ ससिवेहु व दुल्लक्खु नरत्तणु अह तं कोइ कयाइ वि विधइ मायंदीपुरि पउरसहायही दोवइ कउरवसभवित्ति व जिणिवि सव्वसंगामसमत्थें को आसंघइ पावियकित्तणु । न पुणु जीउ मणुयत्तणु संधइ । धीय सयंवरि दोवयरायो । विधिवि चंदवेहु धरकित्ति व । लइय रइ व्व मणोहरि पत्थे। । सिविणक्खाणं गदं ॥६॥ ५ १३. १ से । २ वहुल्लहु। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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