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________________ ३. ४. ५३ ] , कहकोसु [ २३ जइ हउँ तो किं कारण अन्न चित्ति वि एउ समुज्जलवन्न । अप्पउ असहंत सावत्तउ परमुद्देएँ कक्करि घित्तउ । रक्खसि सुहगइजणियविमद्दे हय मिच्छामरणेण रउद्दे। १० ___घत्ता-दूरुज्झिउ तेण मिच्छामरणु जिणायमा । विहरंतु मुणिंदु कहिमि काले सो दि? तण ॥२॥ वुज्सिउ बोहें पुव्वभवंतर परियाणिउ एसो सो महु वरु। निठुरु निद्दयमणु निल्लक्खणु कुलपरिहासहीणु अवियक्खणु । सो जिह उवहसिऊण पणट्ठउ । एवहिँ कहिँ महु वच्चइ दिट्ठउ । एव विचितिवि एयविहारिहिँ मुणिसीहहो गय मासाहारिहिँ । सा [हु] हयास हिमाचलधीरही दूसहभुक्खाखामसरीरहो। भोयणकालि कसायकयंतही लिंगवियारमिसेण सया तहो।। करइ' उवद्दउ लज्जइ में वणु नियवि विविज्जइ कयजणजेवणु' । कालें जंतें दुक्कियसंवरु जाउ तयट्ठियसेसु दियंबरु । घत्ता-सो एक्कदिणम्मि विहरमाणु सच्छंदगइ। ___ चरियाग पइट्ठ रायगेहु पुरु धीरमइ ॥३॥ १० ५ तहिँ भोयणु पउत्तविहिपुण्ण चेल्लणमहएवी विइन्न । चिरभववेरिणीय वेउव्विउ लिंगवियारु तासु सहसा किउ । तं निएवि उड्डाहाभीयण चेडयनामनराहिवधीयण। मुणि आसाइयतवसिरिसाइउ चउदिसु कंडवडें पच्छाइउ । भुत्तु निरंतरु कुगइनिरोहणु एव करइ को किर उवगृहणु। देवेहिँ साहुक्कारिय राणी तिहुयणविक्खाणी मुणि जाणी। साहू विय अईवनिम्विन्नउ काणणे सच्चवाउ पडिवन्नउ । सुक्कज्झाण विसेवि विचित्तउ णाणु अणोवमु तं संपत्तउ । देवागमणु दूउ मइवंतण पुच्छिउ जइवरु सेणियकता : किउ उवसग्गु केण किं कारण कहि सामिय गुरुसंसयवारणु। आइ मज्झु अवसाणु न रक्खिउ ता तेणावि सवइयरु अक्खिउ । पत्ता-मुणिवयणु सुणेवि अट्टरउद्दाइसु विरउ । संजायउ लोउ दंसणनाणचरित्तरउ ॥४॥ ३. १ काइ । २० नेवणु । १० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001367
Book TitleKahakosu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreechandmuni
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1969
Total Pages675
LanguageApbhramsa, Prakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size10 MB
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