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________________ दीवो ताणं सरणगइपइट्टा-द्वीप समान रक्षण करनार, शरणरूप, गतिरूप, आधाररूप अप्पडिहयवरनाणदंसणधराणं वियदृछउमाणं-अस्खलित श्रेष्ठ ज्ञान दर्शन धारण करनारने. घातीकर्म रहितने. जिणाणं जावयाणं तिनाणं तारयाणं-जिनोने, जय करावनारने, तरेलाने, तारनारने. - बुद्धाणं बोहयाणं मुत्ताणं मोअगाणं-बोध पामेलाने, बोध पमाडनाराने मुक्ति, पामेलाने, मुक्ति करावनारने. भावार्थ:-संसार समुद्रमां डूबता जीवोने द्वीपनी जेम आश्रय आपी रक्षण करनारा, अनर्थना नाश करनारा, एथीज कर्मना उपद्रवोथी भय वाळाने शरणरूप, सुखने माटे दुःखियाने आश्रयरूप, भवकुवामां पडता प्राणिने आलंबनरूप एवा परमात्मा, कोइथी हणाय नहीं एवा श्रेष्ठ ज्ञान अने दर्शनने धारण करनारा छे, छद्मस्थ अवस्था तेमनी दूर थइ छे एटले घातिकर्मोनो नाश थयो छे. पोते कर्मशत्रुने जीतनारा छे. अने बोजानी पासे कर्मशत्रने जीतावनारा छे, पोते संसारसमुद्रने तरी गया छे अने बीजाने तारे छे, पोते बोध पामेला छे अने बीजाने बोध पमाडनारा छे, पोते कर्मथी मूक्त थया छे अने बीजाने तेथी मुक्त करनारा छे. मू०-सबन्नूणं, सबदरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ-मणंत मक्खय-मव्वाबाह-मपुणरावित्ति-सिद्धिगइनामधेयं ठाणं संपत्ताणं, नमो जिणाणं जिअभयाण ॥९॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001362
Book TitlePanch Pratikramana Sarth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGokaldas Mangaldas Shah
PublisherShah Gokaldas Mangaldas
Publication Year1942
Total Pages455
LanguageGujarati, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Gujarati, Ritual_text, & Ritual
File Size18 MB
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