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________________ सवारी राज महलों के नीचे से गुजर रही थी कि चुगलखोरों ने यह अवसर देखा और स्वामी जी की ओर अंगुली का इशारा करते हुए बादशाह से कहा-“हजूर वह जो हाथी पर बैठा हुआ चीभड़ा खा रहा है, वही है सहजानंद।" नवाब गंभीरता से स्वामीजी की ओर देखते रहे । कुछ देर बाद बोले–“यह तो सच्चा औलिया लगता है। औलिया के सिवाय कौन हाथी पर चढ़कर रास्ते के बीच चीभड़ा खा सकता है?" सब का मुँह जमीन की ओर झुक गया। जीवन में स्वाभाविकता और बेपरवाही कितनी विलक्षण थी? किसी धर्म को इसलिए बड़ा मत समझो कि वह राजाओं और युवराजाओं ने चलाया है। बड़े-बड़े सम्राटों ने स्वीकार किया है। चूंकि बड़े कहे जाने वालों में अधिकतर आध्यात्मिक अनुभव का अभाव-सा ही होता है। भक्ति का अर्थ, दासता या गुलामी नहीं है। भक्ति का अर्थ है, अपने आराध्य के साथ एकता और अभेदता की अनुभूति। जब यह अनुभूति जगती है, तभी सच्ची भक्ति प्रकट होती है । वस्तु के संग्रह से सुख नहीं मिल सकता, सुख तो अपनी आवश्यकता को कम करने से ही मिल सकता है। _यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक संत सुकरात के बारे में कहा जाता है कि एक बार उनका एक धनी मित्र उन्हें बड़ी विशाल दुकान पर ले गया। वहाँ सुन्दर-सुन्दर वस्तुएँ बड़े आकर्षक एवं मोहक ढंग से सजाई हुई थीं। वहाँ की व्यवस्था ही कुछ ऐसी थी कि ग्राहक देखते ही खरीदने के लिए ललचा उठता। 80 अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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