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________________ पढ़ते-पढ़ते स्वामी विवेकानन्द के एक विश्लेषण पर दृष्टि अटक गई। क्षत्रिय और ब्राह्मण मनोवृत्ति का विश्लेषण करते हुए स्वामी जी ने लिखा है__ "उपनिषद् किसने लिखे थे? राम कौन थे? कृष्ण कौन थे? बुद्ध और महावीर कौन थे? जब कभी क्षत्रियों ने उपदेश दिया तो उन्होंने बिना किसी भेदभाव के सभी को धर्म का अधिकार दिया है। ___ और जब-जब ब्राह्मणों ने कुछ लिखा है, तो औरों को सब प्रकार के अधिकारों से वंचित करने की चेष्टा की है।" यदि संसार के सभी मनुष्य अपने-अपने भाग्य पर भरोसा कर के बैठ जायें, तो बिना किसी अणुबम के ही उसका विनाश हो सकता है। भाग्य और पुरुषार्थ का प्रयोग समझ कर करो। कर्तव्य के आदि में पुरुषार्थ को जोड़ो, और अन्त में भाग्य को । 'करना' तुम्हारा धर्म है । यदि सफल हो गए तो उसका श्रेय भाग्य को देकर अहंकार से बच सकते हो। यदि असफल हुए तो उसका भी कारण कुछ हद तक भाग्य को मानकर दीनता जनित संताप से छुटकारा पा सकते हो। तुम जीवन में इसलिए निराश न होओ कि “तुम्हारा जीवन पानी के बुलबुले की तरह क्षणिक है।” इतने मूल्यवान जीवन की इतनी कम कीमत आंक कर उन्नति के प्रयत्नों से विमुख हो जाना निरी-पुरुषार्थहीनता ही नहीं, बल्कि मानव बुद्धि का उपहास भी है। - 68 अमर डायरी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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