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________________ आज राष्ट्र और समाज को उन मनुष्यों की जरूरत है जो 'शिव' हैं शक्ति और उत्साह सम्पन्न हैं, राष्ट्र पर आज उन शवों (लाशों) का भार नहीं सहा जा सकता जिनमें देश, धर्म और समाज के लिए कुछ भी करने की शक्ति नहीं है। मन का अन्धकार शास्त्रों का ज्ञान कितना ही क्यों न हो, पर उसके नीचे भी अन्धकार चलता रहता है, वेश-भूषा, परम्परा और धर्मगुरुओं की छाया में भी वह अन्धकार पलता रहा है, जब तक आत्मदर्शन और विवेक की किरणे मन में प्रवेश नहीं कर पातीं, वह अन्धकार टूट नहीं सकता। उस अन्धकार में चलते हुए सभी एक दूसरे को चोर, मूर्ख, मिथ्यात्वी और दुष्ट के रूप में समझते रहते हैं। कल्पना कीजिए गहरे अन्धकार में किसी घर में चोर घुस गया हो, उसकी खड़खड़ाहट सुनकर घर के मालिक जग पड़े और 'चोर-चोर' का शोर मचाकर सभी को जगा दे, शोर सुनकर चोर किसी कोने में दुबक कर बैठ गया हो, और घर वाले चोर की तलाश में एक दूसरे से भिड़ पड़ें, एक-दूसरे को चोर समझकर लाठियाँ बरसाने लग जाएँ, उस अन्धकार में उन्हें पता भी नहीं चलता कि कौन अपना है, कौन पराया? कौन चोर है, और कौन चोर को पकड़ने आया है। __यही दशा हम सबकी है। जब मन में अन्धकार भरा रहता है तो अपने-पराए और चोर-साहूकार का भेद नहीं कर पाते, और यों ही एक-दूसरे से भिड़ते रहते हैं। एक-दूसरे को गालियाँ देते रहते हैं। ___ आज सम्प्रदायों, परम्पराओं और वेश-भूषा में जो परस्पर विग्रह और द्वन्द्व चल रहा है उसका मूल कारण यही मन का अन्धकार है, मन के अन्धकार में भटकते हुए हम एक-दूसरे पर आज लाठियाँ बरसा रहे हैं, उन्हें अज्ञानी, मूर्ख और मिथ्यात्वी बतला रहे हैं। जिन्दा मनुष्य की निशानी ___ जब मैं लोगों से यह शिकायत सुनता हूँ कि क्या करें, परिस्थितियाँ प्रतिकूल हैं, नहीं तो हम भी कुछ करते । तब मुझे सचमुच बड़ा ताज्जुब होता है। मैं सोचता हूँ वे जिन्दा भी हैं या नहीं ? उनमें जीवन की आग है भी या नहीं? वे अमर डायरी 145 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001353
Book TitleAmar Diary
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1997
Total Pages186
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Spiritual, & Ethics
File Size8 MB
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