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________________ सामाजिक व्यवस्था [द] शूद्र : जैन पुराणों में शूद्रार्थ कारु, अकारु प्रेष्य, दास, अन्त्यज तथा शूद्र शब्द व्यवहत हुए हैं । जैन पुराणों के अनुसार जो नीच कर्म करते थे तथा शास्त्रों से दूर भागते थे, उन्हें 'शूद्र' कहा गया है । महा पुराण में वर्णित है कि जो क्षत्रिय तथा वैश्यों की सेवा करते थे, वे शूद्र कहलाते थे ।२ जैन पुराणों से शूद्रों के विभाजन पर भी प्रकाश पड़ता है। पद्म पुराण में शूद्रों के प्रेष्य, दास आदि भेद उपलब्ध हैं । महा पुराण ने शूद्रों के मुख्यतः दो भेद वर्णित किये हैं : * [क] कारु शूद्र : धोबी, नाई आदि कारु शूद्र थे। [ख] अकारु शूद्र : कारु से भिन्न आचरण करने वाले अकारु होते थे । कारु शूद्र के भी स्पृश्य और अस्पृश्य के भेद से दो उपभेद होते थे : १. स्पृश्य कारु शूद्र : जो स्पृश्य या छूने योग्य थे उन्हें स्पृश्य कारु शूद्र कहा , गया है । उदाहरणार्थ, नाई, कुम्हार आदि । २. अस्पृश्य कारु शूद्र : जो छूने योग्य नहीं होते थे, उन्हें अस्पृश्य कारु शूद्र कहा गया है। उदाहरणार्थ, चाण्डाल आदि । जैनेतर ग्रन्थों में तक्षकार, तन्त्रवाय (जुलाहा), नापित, रजक एवं चर्मकार इन पाँच प्रकार के कारु शिल्पियों का उल्लेख मिलता है। डॉ० आर० एस० शर्मा का शूद्रों की स्थिति पर यह विचार है कि कालान्तर में शूद्रों ने कृषि, पशुपालन, शिल्प एवं व्यापार द्वारा अपनी स्थिति सुदृढ़ कर वैश्यों के समीप आने लगे थे। जो खेत ब्राह्मण को उपलब्ध थे, उन पर वे शूद्रों द्वारा खेती करवाते थे। जैन पुराणों के समय में शूद्रों की स्थिति सुधारने की चेष्टा की गई है। जैन एवं बौद्ध धर्मों के आन्दोलनों के परिणामस्वरूप शूद्रों को १. ये तु श्रुताद् द्रुतिं प्राप्ता नीचकर्मविधायिनः । शूद्रसज्ञामवापुस्ते भेदैः प्रेष्यादिभिस्तथा ॥ पद्म ३।२८, हरिवंश६३६ तुलनीय-महाभारत, शान्तिपर्व ६०।२८-३५; उद्योगपर्व ४०।२८; भीष्मपर्व ४२।४४; मनुस्मृति ।१६१ २. तेषां शुश्रूषणाच्छूद्रास्ते..."महा १६।१८५ ३. पद्म ८।२५८ ४. महा १६।१८५-१८६ ५. याज्ञवल्क्य २।२४६, १।१८७; मनुस्मृति ५।१२८, १०।१२ ६. आर० एल० शर्मा-वही, पृ० २८२ '9. प्रेम सुमन जैन-कुवलयमालाकहा का सांस्कृतिक अध्ययन, वैशाली, १६७५, पृ० १०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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