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________________ सामाजिक व्यवस्था है । ये विशेषताएँ वस्तुतः राजपूत 'सिवैलरी' के अन्तर्गत आती हैं जिसका उल्लेख तत्कालीन ग्रन्थों में अनेक स्थलों पर मिलता है - उदाहरणार्थ, राजतरंगिणी । २ इस संदर्भ में महा पुराण का एक स्थल विशेषतया विचारणीय है, जहाँ ब्रह्मा ऋषभदेव ने सर्वप्रथम क्षत्रिय वर्ण की सृष्टि की थी । आपाततः यह प्रसंग चातुर्वर्ण सृजन के पारम्परिक आख्यान के समरूप नहीं है, जहाँ ब्राह्मण को ब्रह्मा की प्रथम सृष्टि माना गया है । यह सम्भावना की जा सकती है कि जैनी परम्परा का यह सम्प्रदायगत लक्षण है । किन्तु इसकी ऐतिहासिक व्याख्या अन्य ढंग से भी की जा सकती है । गुप्तों के पतन के उपरान्त यदि एक ओर राजनीतिक विप्लव के स्पष्ट लक्षण दृष्टिगोचर हो रहे थे, तो दूसरी ओर समाज में ही सम्भ्रम की प्रवृत्तियाँ क्रियाशील हो रही थीं। ऐसी सम्भावना है कि जैन पुराणों के रचनाकाल में सार्वभौमसत्ता के स्थान पर सामन्तवादी विचारधाराएँ अधिक प्रबल हो रही थीं और राजस्थान एवं गुजरात जैसे क्षेत्रों में सामन्तों ने न केवल राजनीतिक दृष्टि से, अपितु सामाजिक दृष्टि से भी अपना गौरव स्थापित किया था। यह सम्भावित भी है कि महा पुराण द्वारा क्षत्रिय जाति की सर्वश्रेष्ठता स्वीकार किया जाना इसी स्थिति की ओर संकेत करता है | क्षत्रियों के संदर्भ में जैन पुराणों ने इनके अन्य कर्त्तव्यों का उल्लेख किया है । महा पुराण ने क्षत्रियों के पाँच - कुल - पालन, बुद्धि - पालन, आत्म-रक्षा, प्रजा रक्षा तथा समज्जसत्त्व-धर्म (कर्तव्य) वर्णित किये हैं ।" उक्त पुराण में ही क्षत्रियों के अन्य कर्त्तव्यों में न्यायोचित वृत्ति, धर्मानुसार धनोपार्जन करना, रक्षा करना, वृद्धि को प्राप्त करना तथा योग्य पात्र को दान देने का विधान वर्णित है । [स] वैश्य : वैश्यार्थ जैन पुराणों में वैश्य, सेठ, वणिक्, श्रेष्ठी एवं सार्थवाह शब्द प्रयुक्त हुए हैं। श्रेष्ठि पद परिवार के सबसे वरिष्ठ व्यक्ति को दिया जाता था । " १. पद्म ३।२४६, ७८/१२ २. राजतरंगिणी ७।३२५ आन वेधसा सृष्टः सर्गेयं क्षत्रपूर्वकः । महा ४२|६ ३. ४. द्रष्टव्य, यादव - वही, पृ० ३४ ५. महा ४२१४ ६. वही ४२।१३ ७. ४५ वही ४७।२१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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