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________________ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन हुआ कि अधोलोक मूंठा के समान, ऊर्ध्वलोक मृदंग के समान और मध्यलोक (तिर्यक् लोक) झालर के सदृश्य हैं। नीचे अर्द्ध मृदंग रखकर उस पर यदि पूरा मृदंग रखने पर जैसा आकार दृष्टिगत होता है वैसा ही लोक का आकार है। किन्तु विशेषता यह है कि लोक चौकोर है अर्थात् कमर पर हाथ रख कर तथा पैर फैलाकर अचल खड़े हुए मनुष्य का जो आकार निर्मित होता है, उसी आकृति को यह लोक ग्रहण करता है। तीनों लोकों की लम्बाई चौदह रज्जु प्रमाप कथित है।' [i] अधोलोक : अधोलोक में सप्त भूमियाँ हैं, यहाँ नारकी निवास करते हैं। धरतीतल में प्रथम रज्जु के अन्त में जहाँ पृथ्वी समाप्त हो जाती है वहाँ से अधोलोक प्रारम्भ होता है । यहाँ से सात भूमियाँ हैं ।२ पद्म पुराण के वर्णनानुसार सप्त भूमियाँ निम्नवत् हैं-रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा, पङ्कप्रभा, धूमप्रभा, तमःप्रभा और महातमःप्रभा । ये भूमियाँ घोर कष्टदायक तथा निरन्तर अधिकार से व्याप्त रहती हैं । पाप कर्म करने से नरक उपलब्ध होता है। नरक में कठोरतम वेदनाएँ एवं दुःख प्राप्त होता है । यहाँ अगणित प्रकार के दुःख होते हैं जिनका वर्णन करना सम्भव नहीं है। महा पुराण में वर्णित रौरव नरक का अन्तिम (सातवाँ) स्थान है ।' महा रौरव नरक का उल्लेख हरिवंश पुराण में उपलब्ध है। इसी पुराण में कर्मानुसार नरकों का अधोलिखित उल्लेख है-सीमान्तक, इन्द्रक, रौरव, भ्रान्त, उद्भ्रान्त, सम्भ्रान्त, असम्भ्रान्त, विभ्रान्त, वस्त, त्रासित, वक्रान्त, अवक्रान्त तथा विक्रान्त । पद्म पुराण में तिर्यञ्च नरक का उल्लेख आया है। [i] मध्यलोक : इसका आकार वलय की भाँति होता है। इसमें बहुत से द्वीप और समुद्र विद्यमान हैं । इनके मध्य में लवण समुद्र से आवृत्त जम्बूदीप है। जम्बूद्वीप के मध्य में मेरु पर्वत है। इसके अन्तर्गत सात क्षेत्र आते हैं-भरत, हैमवत, १. हरिवंश ४१५-११ २. वही ४११२-१७ ३. पद्म १०५।११०-१११ ४. वही १४।२४-३३, १०५।११२-१३६, १२३।५-११; महा १०।१८-१२० ५. महा ६७।३७६ ६. हरिवंश १७।१५२ ७. वही ३।११०-११८, ४।२४६-२५६ ८. पद्म २०११३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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