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________________ २८० जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन कमलों द्वारा पूजित प्रदर्शित करना चाहिए। प्रतिमा आठ प्रातिहार्यों से संयुक्त होनी चाहिए।' जैन परम्पराओं के अनुसार तीर्थंकर की कुछ असाधारण विशेषता होती है। जैन शान्तिपाठ में' में आठ प्रातिहार्य-दिव्य वृक्ष, देवताओं द्वारा पुष्पवृष्टि, छाता सहित सिंहासन, दो चामर, दिव्य-ध्वनि, दुन्दुभि', धूप रोकना तथा प्रभामण्डल विशेषतायें हैं। हरिवंश पुराण में वर्णित है कि मन्दिर के गर्भगृह में सुवर्ण एवं रत्नों से निर्मित ५०० धनुष ऊंची १०८ 'जिन-प्रतिमायें' थीं। यहां पर यह विचारणीय प्रश्न है कि क्या ५०० धनुष ऊँची प्रतिमा का निर्माण सम्भव है ? यह ऊँचाई अतिश्योक्ति-सी प्रतीत होती है, परन्तु पुरातात्त्विक साक्ष्य तीर्थंकरों की ऊँची प्रतिमानिर्माण का दृष्टान्त प्रस्तुत करता है । मैसूर के श्रवणवेलगोला, कारकल तथा पन्नूर से ३५' के ७०' ऊँची जैन तीर्थंकरों की सुन्दर मूर्तियाँ प्राप्त हुई हैं।' जैन पुराणों के रचनाकाल में तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के साथ यक्षों (शासन देवताओं) तथा देवताओं की मूर्तियां भी निर्मित करने का उल्लेख मिलता है। डॉ. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल के विचारानुसार कुषाणकाल की जिन मूर्तियों में प्रतीक-संयोजना के अतिरिक्त यक्षयक्षिणियों का अनुगामित्व नहीं मिलता। यह विशेषता गुप्त काल से आरम्भ होती है, तब से तीर्थंकरों की प्रतिमाओं के साथ यक्ष-यक्षिणियों का साहचर्य अनिवार्य बन गया है।" १. पद्म २८१६५-६६ २. पुष्यदन्त का महा पुराण १।१८।७-१०; समवायांग-सूत्र, सूत्र ४३ पृ० ५६-६० हेमचन्द्रकृत अभिाधनचिन्तामणि १।५७-६४ दिव्यतरुः सुरपुष्पवृष्टिदुन्दुभिरासनयोजनघोषो । आतपवारणचामरयुग्मे यस्य विभाति च मण्डलतेजः ॥ जैन शान्तिपाठ; द्रष्टव्य- वी० सी० भट्टाचार्य-जैन आइक्नोग्राफी, दिल्ली, १६७४, पृ० २० दुन्दुभि में पांच संगीत वाद्यों का प्रयोग किया जाता था, जिसे पंचमहाशब्द कहते हैं। पाँच संगीत वाद्य इस प्रकार हैं-श्रृग, तम्मत (ड्रम), शंख, भेरी तथा जयघाट-द्रष्टव्य, भण्डारकर-जैन आइक्नोग्राफी, इण्ठियन एण्टीक्यूटी, जून १६११ रत्नकाञ्चननिर्माणाः पञ्चचापशतोच्छिताः । __ अष्टोत्तरशत तत्र जिनानां प्रतिमा मताः ॥ हरिवंश ५।३६२ ६. ई० बी० हावेल-द आइडियल्स ऑफ इण्डियन आर्ट, लन्दन १६११, पृ० १२८ ७. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल-भारतीय स्थापत्य, लखनऊ १६८६, पृ० ४६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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