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________________ कला और स्थापत्य २६५ (७) दीपिका : लम्बी होने के कारण इनका नाम दीपिका पड़ा । दीपिका एक लम्बी नहर होती थी जो राजमहलों में होती हुई गृहोद्यान तक जाती थी। इसके मध्य क्रीड़ावापियाँ निर्मित की जाती थीं। उत्तम उद्यानों के मध्य स्थित, फूलों से सुशोभित, उत्तम सीढ़ियों से युक्त एवं क्रीड़ा के योग्य दीपिकाओं का उल्लेख जैन पुराणों में हुआ है ।२। (८) धारागृह' : ऐसे जलाशय को धारागृह कहते हैं जिसमें कई स्थानों पर फव्वारे निर्मित होते थे। फव्वारों को नियन्त्रित करने के लिए धारा-यन्त्र लगाये जाते थे। राजमहलों में इसका निर्माण किया जाता था। [iii] भवन : प्रकार एवं स्वरूप : जैन पुराणों के परिशीलन से भवनों के अधोलिखित नाम मिलते हैं, जो मूलभूत में एक होते हुए भी अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं। निर्माण की दृष्टि से ये पृथक् हैं । इनके प्रकार का निर्धारण इनकी बनावट के आधार पर होता है । जैन पुराणों में उल्लिखित भवनों के नाम निम्नवत् हैंगृह', गेह. प्रासाद', आगार', मन्दिर', आलय', सद्म", वेश्म", निलय१२, चैत्य" कुट विमान", जिनेन्द्रालय", शाला", पुष्करावर्त, गृहकूटक", वैजयन्तभवन', गिरिकुटक२१, सर्वतोभद्र २२ । जैनेतर ग्रन्थ समराङ्गणीय-सूत्रधार में भी भवनों के उक्त नाम उपलब्ध हैं ।२१ जैन पुराणों में उल्लिखित आवासगृह, राजभवन, मन्दिर आदि का यहां पर १. वासुदेव शरण अग्रवाल वही, पृ० २०६ २. पद्म ८३।४२; महा ८।२२ ३. महा ८।२८ ४. पद्म ५।१०३; महा ४६।२४५ ५. वही ६।१२४-१३० वही ८३।४१ ७. वही २।३७ ८. वही २०३६ ६. वही ८०६३ १०. वही २।४० ११. वही ५३।२०३; महा ७।२०६ १२. वही २१४० १३. पद्म ६७।१५ १४. वही ११२।३२ १५ वही ११२।३४ १६. वही ६५॥३७ १७. वही ६८।११ १८. महा ३७।१५१ १६. वही ३७।१५० २० वही ३७११४७ २१. वही ३७११४६ २२. वही ३७।१४६ २३. द्विजेन्द्र नाथ शुक्ल-समरा ङ्गणीय : भवन निवेश, दिल्ली, १६६४, पृ० ६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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