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________________ १२८ जैन पुराणों का सांस्कृतिक अध्ययन उसे घोर कष्ट पहुँचाती थीं । महा पुराण में उल्लिखित वह चक्रवर्ती की पुत्री ही क्यों न हो उसे अपार कष्ट होता था, तब सास आदि है कि पतित्यक्ता स्त्री चाहे सहना पड़ता था । २ ६. सती प्रथा : 'अस्' धातु से 'शतृ' प्रत्यय होने से स्त्रीत्व विवक्षा में 'ईकार' प्रत्यय हुआ तथा 'अस्' के अकार का लोप होने से 'सती' शब्द बना । इसका अर्थ है जो स्त्री अपनी सत्ता को नित्य स्थिर रखे वह सती है अर्थात् जिसने पति के साथ अपने शरीर को भस्म कर लिया है। जैन पुराणों के परिशीलन से सती प्रथा का प्रचलन ज्ञात होता है । महा पुराण में निरूपित है कि पति के युद्धस्थल में वीरगति प्राप्त करने पर पत्नियाँ जौहर व्रत का पालन करती थीं अर्थात् उनके मृत शरीर के साथ चिता में भस्म हो जाती थीं। इसी पुराण में अन्यत्र वर्णित है कि पति के मरने पर कभी-कभी पत्नियाँ आत्म हत्या भी करती थीं। हमारे आलोचित जैन पुराणों के साक्ष्य पारम्परिक पुराणों के समस्तरीय हैं। इन पुराणों में सती होने वाली स्त्रियों के उदाहरण उपलब्ध हैं ।" जैन सूत्रों में सती प्रथा के बहुत कम उदाहरण प्राप्य हैं ।" सती प्रथा के प्रचलन का प्रमाण पुरातात्त्विक अन्वेषणों से ज्ञात होता है । एरण के अभिलेख में गोपराज की पत्नी का गुणगान हुआ है, जिसने मृत पति का अग्नि-राशि में अनुगमन किया था । चंगुनारायण के स्तम्भ लेख के अनुसार नृप - पत्नी राज्यवती, पुत्र- वात्सल्य की उपेक्षा कर दिवंगत पति के साथ सती हुई थी । “ अहिच्छत्र के उत्खनन से ८५० से ११०० ई० के मध्य सती प्रथा के प्रचलन का उल्लेख मिलता है ।' १. पद्म १७३६६ २. महा ६८।१६७-१६८ ३. वही ४४ । २६६-३०२ ४. वही ७५१६३ एस० एन० राय - वही, पृ० २८२-२८३ ५. ६. जगदीश चन्द्र जैन - वही, पृ० २७१ कार्पस इंसक्रिप्शनम् इण्डिकेरम्, भाग ३, पृ० ६३ ७. ८. वही, भूमिका, पृ० ८५ ८. वी० एस० अग्रवाल - ऐंशेण्ट इण्डिया, १६४७-४८, नं० ४, पृ० १७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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