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________________ ११६ सामाजिक व्यवस्था वियोगिनी निरन्तर उद्विग्न रहती है, नेत्र आँसुओं से परिपूर्ण रहते हैं, नव प्रसूता गाय के समान पुत्र से मिलने के लिए व्याकुल रहती है, पुत्र के प्रति स्नेह प्रकट करने को लालायित रहती है और घोर शोक-सागर में डूबी रहती है । पुत्र वियोग में माताओं के बाल बिखरे रहते हैं तथा पृथ्वी पर लोटती रहती हैं । २ आजकल के आधुनिक वातावरण में माताएँ अपने बच्चों को अपना दूध नहीं पिलाती, उसी तरह महा पुराण के रचना काल में सम्भ्रान्त परिवारों की माताएँ भी अपने बच्चों को अपना दूध नहीं पिलाती थीं, अपितु धायें अपना दूध बच्चों को पिलाती थीं । (iv) विधवा : विगत ( मर गया ) है धव (पति) जिसका ऐसी स्त्री विधवा हुई । 'विधवा' शब्द बहुव्रीहि समास है । महा पुराण में विधवा को परिभाषित करते हुए वर्णित है कि विधवा उस स्त्री को कहते हैं, जिसका पति मर गया हो, अनाथ हो तथा बलहीन हो । उक्त पुराण में उल्लिखित है कि विधवा को घोर दुःख झेलना पड़ता है | मांगलिक कार्यों में विधवाओं का निषेध रहता है ।' पद्म पुराण के अनुसार पति के मरने पर स्त्रियाँ अपने हाथों की चूड़ियाँ स्वतः फोड़ लेती हैं । महा पुराण में वर्णित है कि कभी-कभी पति के मरने पर स्त्रियाँ तलवार से आत्म हत्या कर लेती थीं। कुछ स्त्रियाँ पति के मरने पर दुःख को समेट कर अवशेष जीवन को व्रतोपवास, पूजा-अर्चना द्वारा जिन व्रत धारण कर जिनेन्द्र की सेवा द्वारा अपना परलोक सिद्ध करती थीं और सुख साधनों का परित्याग कर सादगी का जीवन व्यतीत करती थीं । " विधवा स्त्रियाँ कोई भी आभूषण नहीं धारण करती हैं । आलोचित जैन पुराणों के उक्त कथन की पुष्टि जैनेतर पुराणों से भी होती है । " १. पद्म ८१1३-४ २ . वही ८१।६६ ३. महा १४।१६५ ४. वही ४३।६८; तुलनीय - ऋग्वेद १८७।३ ५. वही ६८।१७१-१७२ ६. पद्म ७८।६ ७. महा ७५।६३ ८. वही ७१ ३६२, ६।५५-५७; तुलनीय - कात्यायन ६२६-६२७, पराशर ४।३१ ६. वही ६८।२२५; वृद्धहारीत ११।२०५-२१० १०. एस० एन० राय - वही, पृ० २८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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