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________________ सामाजिक व्यवस्था मेरु पर्वत के मस्तक पर क्षीरसागर के पवित्र जल से भगवान् का जो अभिषेक किया जाता है, वह उन परमेष्ठी की मन्दराभिषेक क्रिया होती है । " ४१. गुरुपूजन क्रिया : स्वतन्त्र और स्वयंभू रहने वाले भगवान् ही गुरु की पूजा को प्राप्त इसलिए सभी उनकी पूजा के विद्याओं का उपदेश होता है । वे शिष्य भाव के बिना होते हैं । आप अशिक्षित होने पर भी सभी को मान्य हैं, करते हैं । : ४२. यौवराज्य क्रिया कुमार काल आने पर उन्हें युवराज-पद प्राप्य होता है, उस समय महाप्रतापवान् उन भगवान् को राज्य पट्ट बाँधा जाता है तथा अभिषेक किया जाता है ।" ४३. स्वराज्य क्रिया : समस्त राजाओं ने राजाधिराज के पद पर जिनका अभिषेक किया है और जो अन्य के शासन से मुक्त इस समुद्रपर्यन्त पृथ्वी का शासन करते हैं, ऐसे उन भगवान् को स्वराज्य की प्राप्ति होती है ।" ८३ ४४. चक्रलाभ क्रिया : निधियों और रत्नों की उपलब्धि पर उन्हें चक्र की प्राप्ति होती है, उस समय समस्त प्रजा उन्हें राजाधिराज मानकर उनका अभिषेक सहित पूजा करती है । " ४५. दिशाञ्जय क्रिया : चक्ररत्न को आगे कर समुद्रसहित समस्त पृथ्वी को जीतने वाले उन भगवान् का, जो दिशाओं को जीतने का उद्योग करता है, वह दिशाञ्जय क्रिया होती है । ४६. चक्राभिषेक क्रिया : जब भगवान् दिग्विजय पूर्ण कर अपने नगर में प्रवेश करने लगते हैं, तो चक्राभिषेक की क्रिया होती है ।" ४७. साम्राज्य क्रिया : चक्राभिषेक के बाद साम्राज्य क्रिया होती है । इसमें राजाओं को शिक्षा दी जाती है । उनके धर्मसहित साम्राज्य क्रिया का पालन करने से वह जीव इहलोक और परलोक दोनों में ही समृद्धि को प्राप्त होता है ।" ४८. निष्कान्ति क्रिया : बहुत दिनों तक पूजा और राजाओं का पालन करते हुए उन्हें किसी समय भेद-विज्ञान उत्पन्न होने पर दीक्षा ग्रहणार्थं उद्यम होते १. महा ३८।२२७-२२८ २ . वही ३८।२२६-२३० ३. वही ३८।२३१ ४. वही ३८।२३२ Jain Education International ५. महा ३८।२३३ ६. वही ३८।२३४ ७. वही ३८।२३५ - २५२ ८. वही ३८।२५३-२६५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001350
Book TitleJain Puranoka Sanskrutik Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDeviprasad Mishra
PublisherHindusthani Academy Ilahabad
Publication Year1988
Total Pages569
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Culture
File Size8 MB
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