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________________ ३८ जैन इतिहास की प्रसिद्ध कथाएँ का प्रबन्ध न हो सका होगा, तभी तो इस प्रकार तमसाच्छन घोर - रात्रि में भी वह वर्षा से बिफरी हुई नदी को प्राणलेवा तेज धारा में अपने अतिप्रिय जीवन की बलि दे रहा है । करुणार्द्र हृदय रानी ने विचारमग्न राजा से कहा'महाराज ! धनकुबेरों की महानगरी राजगृह में क्या एक वृद्ध पुरुष की रोटी का प्रबन्ध भी नहीं हो सकता ? बेचारा मौत की चौखट पर खड़ा है, फिर भी उसे पेट के लिए ऐसी भयानक रातों में नदी पर लकड़ियाँ बीननी पड़ती हैं। मगध के महान राज्य में वृद्धों और दरिद्रों को यह अवस्था ! बरसाती अंधेरी रातों में तो कुत्ते और सियाल भी अपनी धुरी में से नहीं निकलते और यहाँ आदमियों को अपनी रोजी-रोटी के लिए इस प्रकार मौत से खेलना पड़ता है ।" वृद्ध की दयनीय दशा देख कर पहले ही सम्राट् का हृदय पसीज रहा था । और उस पर महारानी की यह बात ? सम्राट् ने तुरन्त पहरेदारों को पुकारा और कहा - " सामने नदी तट पर जाओ, और देखो की नदी की धारा में से लकड़ियां बीनने वाला यह दरिद्र कौन है और कहाँ रहता है ? प्रातः इसे राजसभा में उपस्थित करना !" राजा श्रेणिक को रात भर नींद नहीं आई। बार-बार उनकी आँखों में वही दृश्य घूमने लगा - 'बादल गरज रहे हैं, बिजलियाँ कौंध रही हैं, मूसलाधार वर्षा हो रही है, पुरवा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001345
Book TitleJain Itihas ki Prasiddh Kathaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year
Total Pages90
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size4 MB
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