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________________ ज्ञान मीमांसा १५ मतिज्ञान का दूसरा भेद है, ईहा। अवग्रह के बाद ज्ञान ईहा में परिणत हो जाता है। ईहा क्या है ? इसके उत्तर में कहा गया है कि अवग्रह के द्वारा अवगृहीत पदार्थ के विषय में विशेष रूप से जानने की ज्ञानपरिणति को ईहा कहा जाता है। ईहा शब्द के पर्यायवाची रूप में ऊह, तर्क, परीक्षा, विचारणा और जिज्ञासा शब्द का प्रयोग भी किया जाता है। कल्पना कीजिए, कोई व्यक्ति आपका नाम लेकर आप को बुला रहा है, उसके शब्द आपके कानों में पड़ते हैं। अवग्रह में आपको इतना ज्ञान हो जाता है कि कहीं से शब्द आ रहा है। शब्द सुनकर व्यक्ति विचार करता है, कि यह शब्द किसका है? कौन बोल रहा है? बोलने वाला स्त्री है अथवा पुरुष? फिर सुनने वाला उस शब्द के स्वर के सम्बन्ध में विचार करता है कि यह शब्द मधुर एवं कोमल है, अतः किसी स्त्री का होना चाहिए, क्योंकि पुरुष का स्वर कठोर एवं रूक्ष होता है। यहाँ तक ईहा ज्ञान की सीमा है। यहाँ पर प्रश्न उठाया जा सकता है, कि यह तो एक प्रकार का संशय है, संशय में और ईहा में भेद क्या रहा? उक्त प्रश्न के समाधान में यह कहा जाता है कि ईहा संशय नहीं है, क्योंकि संशय में दोनों पक्ष बराबर होते हैं, अतः संशय उभयकोटिस्पर्शी होता है। संशय में ज्ञान का किसी एक ओर झुकाव नहीं होता। यह स्त्री का स्वर है अथवा पुरुष का स्वर है, यह निर्णय नहीं होने पाता। संशय में न पुरुष के स्वर का निर्णय होता है, न स्त्री के ही स्वर का निर्णय होने पाता है। संशय अवस्था में ज्ञान त्रिशंकु के समान बीच में हो लटकता रहता है। ईहा के सम्बन्ध में यह नहीं कहा जा सकता, क्योंकि ईहा में ज्ञान एक ओर झुक जाता है। किस ओर झुकता है ? इस सम्बन्ध में यह कहा गया है कि अवाय में जिस वस्तु का निश्चय होने वाला है, ईहा में उस ओर ही ज्ञान का झुकाव हो जाता है। संशय ज्ञान उभयकोटिस्पर्शी होता है, जबकि ईहा ज्ञान एककोटिस्पर्शी ही होता है। यह सत्य है, कि ईहा में पूर्ण निर्णय एवं पूर्ण निश्चय नहीं होने पाता है, फिर भी ईहा में ज्ञान का झुकाव निर्णय की ओर अवश्य हो जाता है। संशय और ईहा में यही सबसे बड़ा अन्तर है। मतिज्ञान का तीसरा भेद है-अवाय।अवाय का अर्थ है निश्चय। ईहा के द्वारा ईहित पदार्थ का निश्चित रूप में अन्तिम निर्णय करना ही अवाय है। ईहा में हमारा ज्ञान यहीं तक पहुँचा था कि यह शब्द किसी स्त्री का होना चाहिए, क्योंकि इसमें मृदुता और कोमलता है; परन्तु अवाय में पहुँचकर हमें यह निश्चय हो जाता है, कि यह शब्द स्त्री का ही है। अवाय के पर्यायवाची रूप में आवर्तनता, प्रत्यावर्तनता, अपाय और विज्ञान आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। अवाय-ज्ञान एक प्रकार का निश्चय ज्ञान है। इसमें पदार्थ का निश्चय हो जाता है कि वह क्या है। ___मतिज्ञान का चौथा भेद है धारणा। धारणा का अर्थ है-किसी ज्ञान का बहुत काल के लिए स्थायी होना। अवाय के बाद जो धारणा होती है, उसमें ज्ञान इतना दृढ़ हो जाता है, कि वह कालान्तर में स्मृति का कारण बनता है। इसी आधार पर दर्शन-शास्त्र में 'धारणा को स्मृति का हेतु कहा गया है। धारणा संख्येय या असंख्येय काल तक रह सकती Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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