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________________ १३८ अध्यात्म-प्रवचन इन पाँच नियमों को अभिगम कहते हैं। सचित्त द्रव्य क्या है? पुष्प, फल, फूलों की माला। मुख में ताम्बूल रखकर चबाते जाना। इनका त्याग ही सचित्त का त्याग होता। कच्चा पानी भी तो सचित्त द्रव्य है। अचित्त द्रव्य क्या है? छत्र, चँवर, शस्त्र और उपानत् अर्थात् जूते एवं चप्पल। ये सब अहंकार और अविवेक के प्रतीक माने जाते हैं। उत्तरासंग का अर्थ है-कँधों पर पड़ा दुपट्टा, जिससे वन्दन करते समय, मुख का आच्छादन किया जा सकता है, अथवा करना चाहिए। तीर्थकर, गणधर, आचार्य, उपाध्याय और गुरु को वन्दन करना, हाथ जोड़ना, विनय धर्म कहा गया है। विनय समस्त गुणों का मूल माना जाता है। प्रवचन सुनते समय मन भी एकाग्र हो। ___ सम्यक्त्व की षड् भावना प्रवचनसारोद्धार ग्रन्थ में और धर्म संग्रह ग्रन्थ में, सम्यक्त्व की षड् भावनाओं का सुन्दर वर्णन किया गया है। यहाँ पर भावना का अर्थ है-बार-बार अभ्यास करना। विचारणा और चिन्तना करना। अभ्यास के करने से अस्थिर होता सम्यक्त्व फिर स्थिर हो जाता है। श्रावकों को इन षड् भावनाओं का अभ्यास अनुदिन करना चाहिए। भावनाओं के बार-बार अभ्यास से बुझता हुआ सम्यक्त्व दीपक स्थिर होकर प्रकाश देता है। षड़ भावना इस प्रकार हैं १. सम्यक्त्व-धर्म रूप वृक्ष का मूल है २. सम्यक्त्व-धर्म रूप नगर का द्वार है ३. सम्यक्त्व-धर्म रूप प्रासाद की नींव है ४. सम्यक्त्व-धर्म रूप जगत का आधार है ५. सम्यक्त्व-धर्म रूप वस्तु का पात्र है ६. सम्यक्त्व-चारित्र रूप धर्म का कोष है यहाँ पर उपमाओं के द्वारा सम्यक्त्व की महिमा तथा गरिमा का वर्णन किया गया है। जो सत्य, जो तथ्य और जो तत्व, उपदेश देकर नहीं समझाया जा सकता है, उसको उपमा, रूपक और दृष्टान्त-इन तीन अलंकारों द्वारा सहज ही सुगम तथा सुबोध बनाकर समझाया जा सकता है। यहाँ छह उपमाएँ या छह रूपक या छह दृष्टान्त हैं। जिनके द्वारा गहन गम्भीर सम्यक्त्व को समझाया गया है। उपमाएँ छह इस प्रकार से हैं१. मूल २. द्वार ३. नींव ४. आधार ५. पात्र ६. कोष सम्यक्त्व मूल है, द्वार है, नींव है, आधार है, पात्र है और कोष अर्थात् निधि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001338
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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