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________________ २१० | अध्यात्म प्रवचन क्रोध में अन्धा बनकर उसने अपने उसी बच्चे को, जिसे अभी थोड़ी देर पहले वह प्यार कर रहा था, चूल्हे की जलती आग में झोंक दिया। जीवन की यह एक विचित्र घटना है। उन लोगों के जीवन में इस प्रकार की घटना असम्भव नहीं है, जो लोग अपने मन के आवेगों पर नियंत्रण नहीं कर सकते । मैं मानता हूँ कि उस मजदूर पिता के लिए दस के नोट की कीमत एक बहुत बड़ी कीमत थी, उस नोट को आग में जलते हुए देखकर उसके हृदय को आघात पहुँचना भी कदाचित् सहज कर्म माना जा सकता था, किन्तु उसके सोचने-समझने का तौर-तरीका अपने आप में स्वस्थ न था। क्या वह दस का नोट ही उसके समग्र जीवन का आधार था ? क्या उसका सारा जीवन उसी पर चलने वाला था ? जब कभी मनुष्य के मन और मस्तिष्क में अपने भविष्य के प्रति इस प्रकार का अन्धकारपूर्ण दृष्टिकोण उत्पन्न हो जाता है, तब इस प्रकार की दारुण घटनाओं का घटित होना असम्भव नहीं कहा जा सकता। मानव-जीवन की स्थिति यह है, कि कभी भी, किसी भी समय और किसी भी निमित्त को पाकर, मनुष्य के चित्त का कोई भी सुप्त आवेग जागृत होकर उसके मस्तिष्क के संतुलन को बिगाड़ सकता है । जब कि कभी लोभ, कभी क्रोध, कभी राग और कभी द्वेष, मनुष्य के मानसिक संतुलन पर तीव्र आघात एवं प्रत्याघात कर सकते हैं, उस स्थिति में मनुष्य अपने उन मानसिक आवेगों पर नियंत्रण करने की अपनी शक्ति को खो बैठता है। कितने आश्चर्य की बात है, जो मनुष्य प्रेम और दया का संदेश लेकर संसार को क्रोध एवं लोभ की आग को शान्त करने के लिए चला था, वह स्वयं ही उसमें दग्ध हो रहा है। और जीवन के इन नगण्य प्रसंगों पर अपना संतुलन खोकर स्वयं अपने लिए ही नहीं, अपने परिवार और अपने समाज के लिए भी कटु, अप्रिय और विषम समस्या उत्पन्न कर रहा है। मैं समझता है, इस प्रकार के लोगों का मानसिक संकल्प बहत दूबेल होता है और वे अपने मन के किसी भी आवेग पर इस प्रकार के विषम प्रसंगों पर अपने नियंत्रण करने की शक्ति को खो बैठते हैं । यह उदाहरण है कि भोग काल में असावधान व्यक्ति किस प्रकार भयंकर नए कर्मों का बन्धन कर लेता है। अतः केवल भोग से कर्म क्षीण नहीं होते, आत्मा शुद्ध नहीं होती। मैं आपसे विचार कर रहा था, कि यह आत्मा अनन्त-अनन्त काल से भव-बन्धन में बद्ध है। वह अपने पुरातन कर्म को जितना भोगता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001337
Book TitleAdhyatma Pravachana Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1991
Total Pages380
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size17 MB
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